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________________ : (३६) .६९ घरका द्रव्य तथा कोई वस्तु मंदिर में रखना नहीं ७० चढ़ा द्रव्य मंदिर के मैंडार में रखना नहीं। ७१ निर्माल्य द्रव्यं मंदिर का मोल लेना नहीं । '७२ कोई चीज़ का भाग हिस्सा करना नहीं। ७३ जूवा होड वगैरह मैंदिर में करना नहीं । ७४ वैश्या नाच मॅडई रास मंदिर में करना नहीं । ७५ कसरत तथा नटकला मँदिर में करना नहीं । ७६ अनवोलते वालक को मैंदिर में लाना खिलाना नहीं। • ७७ शुक, मैना, बुलवुल आदि पक्षी पालना नहीं । ७८ दरजी का व कतरवाते का काम करना नहीं । ७९ गहना-आमरण, सुनार से मँदिर में गढाना नहीं । ८० सिवाय दिगम्बर जैन ग्रंथों के और ग्रंथ लिखना लिखाना : नहीं। . . . . ८१ विकार उपजाने चाले. चित्राम लिखना नहीं। घर पशु, गाय, भैंस, पक्षी, सुवादि वांधना नहीं। .८३ पापड मगौडी दाल धोना मुखाना नहीं। . .८४ अभिमान सहित, विनय रहित भैदिर में प्रवेश करना ....... नहीं। - . इस संसार में मोह वस पाप किया करते हुए अनादि से भूमण कर रहे है। संसार में कितना मुख दुख है सो निम्न . प्रकार जानना। संसार रूपी वृक्ष (मोहरस स्वरूप) .. .इस. 'मोहरस स्वरूप' का परिचय भी अमितगति त धर्म परीक्षा प्रन्थ में इस प्रकार बताया है:. एक भव्य पुरुष ने अवधिद्वानी जिनमति नामक मुनिमहायज्ञ को नमस्कार कर के विनय सहित पूछा कि हे भगवन् ! इस प्रसार
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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