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________________ (३०) ... ".दयामय हो शांतिरस हो; परम · · वैराग्यमुद्रा हो। न.. जाविर हो: न काहिर हो, जो ईश्वर हो वो ऐसा हो । 'निरञ्जन . निधिकारी हो, :, निजानन्दरसविहारी हो । संदा "कल्याणकारी हरें, जो ईश्वरं हो तो ऐसा हो । '. न जगजंजाल रचता हो, करम फल का न दाता हो । वह सब बातों का ज्ञाता हो, जो ईश्वर हों तो ऐसा हो । वह सच्चिदानन्दरूपी हो, · ज्ञानमय. शिव सरूपी हो । आप कल्याणरूपी हो, जो ईश्वर हो तो ऐसा हो ।।. जिस ईश्वर के ध्यान सेती बने. ईश्वर कहै न्यामत । वहीं ईश्वर हमारा है, जो ईश्वर हो तो ऐसा हो ॥ - .. २१ प्रकाश । २ वरावर का।३ सहायक! ४ रहित । ५ सय आगे पीछे की छिपी हुई बातों को जानने वाला । ६ जुल्म करने चाला, अन्यायो ।७ क्रोधी, पुष्ट, भन्यायो । पुरमात्मा को रहित मिर्दोष है हम संसारी,कर्मा सहित दोपी है. हम को ईश्वर की श्रेष्ठ भक्ति और गुणानुवाद करना चाहिए। जिस भवन में उनकी यथावत प्रतिमा विराजमान की जाती है उसको "चैत्यालय" कहते हैं आज कलं अधिकतर जिन मंदिर या जैन मंदिर भी कहते हैं । जो भगवान परमात्मा के मार्ग पर चलते हैं उनको जैनी यो भावक कहते हैं । ऐने सर्वत्र परमात्मा के धर्मोपदेश वाणी को जिन . वाणो, जिनवाणी माता, सरखतो, शारदा और पुतं कहते हैं । क्यों कि जैसे माता बुदहीन बालक को ... संसारी मार्ग में मिष्ट बचनो द्वारा प्रबल युवा कर देती है उसी. तरहं यह जिन बाणो संसारी जीवों को धर्म मार्ग में निपुण कर अक्षय पद पिला देती है। हम बारम्यार ऐसे निर्दोष देव और जिन वाणी. को नमस्कार करते हैं। हम को नित्यं ऐसे मंदिर में जाकर ... जिनेंद्र दर्शन भक्ति व पूजा करना चाहिए। पूजा कई प्रकार से की जाती है।
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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