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________________ . ... . ... . से उगमा दी गई है) होता.है | पल्योपम के उपरोक्त वर्षों को संख्या को दश कोडाकोड़ी में गुंणा करने से उपरोक्त २७.३ अङ्क और ३५ शून्यः सर्व ६२ अंक हो जाते हैं जो एक सापरोपम. काल के वर्षों की संख्या है। ..... शास्त्र प्रमाण-उपरोक्त गस्य । नोट- जहाँ जहाँ वड़ी बड़ी आयु पाले मनुष्य या देव देवी आदि की केवल एक जन्म सम्वन्धी आयु की स्थिति बताई, गई.. वह सब इसी पल्यापम और सागरोपम से है न कि किसी प्रकार के पल्य या सागर से जो कि वास्तव में कालादि के परिस माणे सूचक नहीं है.. किंतु कालादि को महान गणंनो जानने के "लिए उपमा मात्र सहायक : 1. शास्त्र प्रमाण भी तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ३, मूलसूत्र ६, २९, ३८ अध्याय ४ मूलसूत्र २८, २९, ३३ .३९,४२, अन्याय म मूलसूत्र १४, १७ : इत्यादि । ..... इन सूत्रों के टीकाकारों ने पल्य और पल्पोपम तया सागर और सागरोपम के वास्तविक अन्तर पर विशेष ध्यान न देकर पल्योपम के स्थान में पल्य और सागरोपम के स्थान में सोगर लिखा है जो एक प्रकार की अशुद्धि हैं । (४) एक कल्पकाल २० कोड़ा कोड़ी सागरोपम का होता, है जिस के एक भाग अवसर्पणो का चतुर्थकाल ( जिस में वर्तमान चौबीसी हुई.).४२. सहन वर्ष कम एक कोडाकोंडी सागरोपमका है। इसी लिए एक सागरोपम के वर्षों की उपरोक्त संख्या को एक कोड़ा कोड़ो में गुणा करने से उपरोक्त २७ अङ्क और ४९ शून्य कुल ७६ अंक प्रमाण संख्या एक कोखा कोडी सागरोपम :"SEE
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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