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________________ . .. . .". . ....... P उपरोक्त इकाई यहाई से ७६ अक प्रमाण जो श्री ऋषम निर्वाण सम्बत् ४१३४५२६३०३०८२०३१, ७SSEURP KEE, LEEL Teruttinuuttijittut ULLET६०४५२. है वह इस प्रकार पढ़ा जा सकता ४पन, १३ नोल, ५.खंब, २६,प्रयं, ३० कोरि, ३०. बास, २ हजार 'और ':३१ सागर, ७३७ शंख ४८ प ५. नो खर्व ४१ अर्व, कोटिं, लाख र हजार ९९९ पल्या शख, पमनील सर्व, ८ अर्व, ४ कोड़ लाख, हा हजार और ९९९ एकटी, ९९९ शेख, ९९ पम, १९.नोल, १ खर्व, ९८ अर्ब ९९ कोड, ९९ लाख, ६० हजार, ५२ अब रहीं दूसरी शंका कि किस जैन अन्य के आधार पर और किस प्रकार यह सम्वत् निकाला गया है। इस शंका के विषय में हमारे किसी २ जैन भ्राता ने बड़े आ. श्चर्यजनक शब्दों में लिखा है कि क्या सागरों के भी वर्ष हो सकते है? जैसे सागर के जल की थाह नहीं ऐसे ही सागर के वर्षों की गिनती नहीं सागर के वर्षों की गिनती करना मानो समुद्र को चुल्ल में माप लेना और अज्ञानों को भम में डाल देना है। यदि सागर के वर्षों की गिनती हो सकती तो बडे र जैनाचार्यों ने क्यों शास्त्रों में नहीं लिखा तथा एक योजन ( यो सहस कोश:) व्यास का और एक योजन हो गहरा गदाः भोगभूमि के सात दिन तक के सेंट वालायों से खूब भरकर और सी. सौ वर्ष के अन्तर से एक टुकड़ा निकालना बताकर जो एक पल्य के वर्षों को गणना अचार्यों ने बताई है या इतने चक्कर में डालार किस लिए कथन को इतना बढ़ाया और अपने समयादि को खोगा? अवसबकी में पत्य के वर्षों की गिनती लिख देते इत्यादि. इसके उत्तर में शास्त्र प्रमाणों द्वारा शंका दूर करने से पहिले यह निवेदन ... -11 Anic.in शकाटकर भमा हरय
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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