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________________ . ( १३६ ) ४१-भाई से भाई की प्रीति । भजन ! हफ्म हमको पिताजो का बजाना ही मनासिव है। . अवय को छोडकर जगल में जाना ही मनासिबी का नहीं है रोश को मौका सनी लझमम मरे भाई । मात केकई के आगे सर झुकाना हो मुनासिय ६ ॥६॥ अवध के तख्त पर अयतो नहीं चैटूगा में हरगत। ताज मेरा, . मरत के सर मजाना हो मुनासिर ॥ चतुप तुमने जो चिल्लो पर चढ़ाया है बिना समझे । धनुष को चाप से उल्टा हटाना हो मुगासिय ॥६॥ राज के वास्ते, भाई न भाई से, लटेंगे म । वचन राजा का अब हमको निभाना दो मुनासिब nu हुश्रा भारत सभी गारत पडो जो फुट आपरत में। कहे न्यामत फूट को श्रव मिटाना ही मनासिव है॥॥ श्री जिनेंद्र पद नमनते, कोई सत्र नगर मंत्र । करम भरम सबंध का, कारन पोनरंका ४२-श्लोक (अतिम प्रार्थना) धन्येयं पृथिवी तथैव जनता धन्याश्च नेशोशन्ययं . धन्या वत्सर मास पक्षदिवसा धन्यः क्षणोअयं च नः । यज्ञाम्माभिासी परस्परमभिप्रीया च सोदर्पयत । संहत्या स्थिनिमारचय्य परमो धर्मा निमः प्रस्तुतः॥ अर्थ-धन्य है यह पथ्वी, धन्य है यह मंडल, धन्य है यह देश, धन्य है यह वर्ष, धन्य है माल, पत्य है यह पत, धन्य है यह नि, धन्य है यह क्षण, जिंस में अपने सम भाई प्रशत्रित होकर परस्पर प्रेम पूर्वक मामिल प्रस्ताव करते हैं । बोलो-जन धर्म को जयःजिन संवक-द्वारकाप्रसाद जैन C. K. (गोत्र कोलभंडारी) . जैसवाल-क्षत्रीय-इक्ष्याकुवंश हायरस निवासी, सभापति श्री दि० जैनधर्म प्रभावनों सभा व पो० मास्तरसाभर लेक (बैड पौषिस ) साताना (मई १९२५६०)
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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