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________________ १२ की स्त्री समाज से प्रार्थना मिय माताओं व वाहनों ?.. मैं अपने इष्टदेव का स्मरण कर आपके सनमुख कुछ लेखं द्वारा प्रकाशं करती हूं कि यद्यपि हर स्थान पर · स्त्रियां धर्मः साधन करती हैं तथापि जैसा करना उचित है वैसा..कम नजर आता है इसलिये मेरा विचार यह है कि आप वाहनों की सेवा करूं। मुझमें ज्यादा ज्ञान नहीं है परन्तु जिन शासन: भक्ति वस कार्य करने को उद्यमी हुई हूं। सन्सार में उपकार और अपकार दो ही हैं। उपकार नाम भलाई और अपकार. नाम बुराई में देखने में अक्षरों का थोडासा ही अन्तर है जो अपना और दूसरों का भला करते हैं उन्हीं का जीवन सफल है.। इस मनुष्य पर्यायको देवभी तरसते हैं। . .. ... जैन समाज के आचार सुधार का एक स्त्री समाज ही “निमित्रं है जैसे गाडी दो पहियों के विना नहीं चल. सक्ती है......... हम आचौदसको सूत्रजी भक्तामरजी . सुना करती है यह इंद्रता जगत प्रसिद्ध है। मंगर हम बहुतसी वहिनें यहभी-नहीं: जानती हैं कि इनमें क्या लिखा है और यदि नियम से शाल स्वाध्याय करें तथा सुनें तो हमारे आचार विचार श्रेष्ठ होसक्त हैं। शीलबन्ती सीता अंजनाकी सी. पदवी धारण हम कर संती हैं। वे भी स्त्रियां हम सरीखी थी। मगर शाखज्ञान ना इस सवव से धर्म में हर प्रकार से दृढ़ थीं और यही कारण है कले मोक्ष मास करेंगी और सन्सारमें उनका नाम विख्यात है।
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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