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________________ (१०६ ) के कारण मनुष्य जन्म व्यर्थ व्यतीत हो रहा है" "गया चयन हाथ आता नहीं"श्रात्माके हित करने के लिये जिनवाणी गहगा करने को कुछ प्रतिज्ञा (यम- यावज्जोवन, नेम कुछ काल पर्यंत) करो-.सदैव ज्ञानोपयोग रहने से नार्थ कर पति का चौंध होता है। प्रमादी रहनेसे बड़ी हानि होती है प्रमाद से छः प्रतियों का अर्यात अस्थिर, अशुभ, आसाता घेदनीय, अयशः कोति, श्रति और शोक का वध होता है पस प्रमाद और कुलंगति तत्काल दूर कर विनयी हो धर्म धारण करना योग्य है यालको स्त्रीयों को विद्या अभ्यास करना जरूरी है। ( समाप्त ) श्री जिनसेनाचार्य ने श्री पद्मपुराण में कहा है कि जो कुछ नेम या यम जीव प्राप्त कर लेता है वही उसका सच्चा . रत्नहै। स्वाध्याय के प्रसाद से असंख्य जीच कुगति से बच गये हैं यह बात शास्त्रों से भली भांति जानी जा संक्ती है:...नेम या यम करने से जीव स्वाध्याय से नहीं छूटता है क्यों .कि नेम या यम भङ्ग करने का बड़ा पाप है इस पाप को चांडा. लादि ने भी बहुत बुरा समझा है इस लिए कोई भी यम व नेम करते समय सब बातों का विचार करने और “सूतक पातक हारी बीमारी सफर इत्यदि (स्त्रियों को इसके अतिरिक्त स्त्रीधर्म जापा वगैरहः ) में छूट रखलेना उचित है । विपति व कठिनसमय में सावधान रहना यही पुरुषार्थ है और जांच. का भी वही समय है! ... ... सत्य जानिए मेण लेन ऐसे है. जैसे बालकः चंद्रमा . : को पकड़ा. चाहे परंतु में भक्ति वस जिनवाणी की स्तुति वगुणानुवाद करूं हूं ।
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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