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________________ __ . ( १७ ) अमान्य कहिए का करि.जोत्या न जाय । अमित कहिए अपार जाका पार प्रभु हो पावै । इस ज़िनवायी के कई अधिकार्य को पानी.धवल, जवथवल, महाधवलादि को रचना जेष्ट सुरी ५ के दिन की गई है . वह दिन भुत पंचमी नाम से विख्यात है। इन-प्रन्यों के दर्शन मृडचिद्री. में . होते हैं। भाज कल इनके पाठ करने की योग्यता किसी में नहीं है । और उन पयों को भूतवलि और पुप्पांदत सुनियों ने धरसेन मुनि जो गिरिनार के शिखर चंद्रगुफा के पासी के. उपदेश से रचे लेष्ट पुदी ५ के दिन रच कर प्रतिष्ठा की। ऐसे महान पंथों की यह श्री नेमचंद्र सिद्धांत च. वती.स्वाध्याय कर रहे.थे.उस वक्त मंत्री चामुंडराय के आने पर उन महान पयों को बंद कर दिया और. भी गोमहसार इत्यादि पंथ रचे । इन के दर्शन से जोव शान को प्राप्त करेंगा और प्राचीन रत्न मई प्रतिमाओं के दर्शन हैं मानों तीन लोक को विभूत वहीं पर इकट्ठी है। इस . लिए हर एक को वहाँ जाकर दर्शन करना ‘चाहिए । यात्रा पुस्तक हमारे यहां से कुछ नियमां पर पिना मूल्य मिलती हैं। . . . उस दिन शालों को बाहर मेज के उपर विराजमान कर धूप.पूजादि करनी चाहिए ।..हम प्रगट किए बिना नहीं रह 'सो कि शहर हाथरस में जिनवाणों ..की सजावट और पूजा श्रत पंचमी को एक महान आदर्श रूप में होती है जिस के लिए जैन समाजं तया लामिश्रीलालजी सोगानी मंत्री सरस्वती भंडारको मोटिः धन्यःगद है। जो जोव उस दिन वृतं करते हैं महापुण्य उपार्जन करते हैं । परंपराय स्वाध्याय के प्रसाद से मोक्ष के पात्र अनते हैं। जिनवाणी की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। . जिनवाणी रक्षा। ....... ....श्रीयुत अमोलकचंद जी मंत्री सरखतो भंडार विभाग भीमती दिगम्बर जैन मालवा प्रांतिक समा ने इस विषन में को
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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