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________________ . ( . ) मुनियों के केवल ज्ञान प्रकट होयं है। मुनि सुव्रतनाथको मुक्त भए । अब नाम, नेमि, पार्श्व, महावीर, चार तीर्थकर और होवेंमे । फिर पंचमकाल जिसे दुखमा काल कहिये सो धर्म श्री न्यूनता रूप मवरतेगा । उस समय पाखंडी जीवों कर . जिन शासन अति ऊंचा है तो भी आबादित होयगा । जैसे रजकर सूर्य का भिम् श्रादित होय । पाखंडी निरदई दया धर्म को लोपकर हिंसा का मार्ग प्रवर्तन करेंगे उस - समय मसान समान ग्राम और मेत संमान लोक कुचेष्टा के करण हारे होवेंगे महा कुधर्म में प्रवीण कर चोर पाखंडी दृष्ट जीव तिनकर पृथ्वी पीडित होयगी किसान दुखी होषेंगे मजा निरधन होयगी महा हिंसक जीव परजीवों के घातक होवेंगे निरन्तर हिंसाकी वैदवारी होयगी पुत्र, मात्रा पिता की श्राज्ञा से विमुख होवेंगे और माता पिता भी स्नेह रहित होयेंगे इत्यादि: · . • - हे शत्रुघन कलिकाल में कपास की बहुलता होवेगी और अतिशय समस्त विलय जायेंगें चारणमुनि देव विद्याध का आवना न होयता अशांनी लोक नग्न मुद्रा के धारक मुनियों को 'देख निंदा करेंगे मलिन चित्तं मूढं जन अयोग्य को योग्य जानेंगे जैसे पतनं दीपक की शिक्षा में पड़े तैसे अज्ञानी पाग . पंथ में पड़ दुर्गति के दुख भोगेंगे और अ महाशांत स्वभाव, तिन को दुष्ट निंदा करेंगे, विषयी जीवों को भक्ति कर पूजेंगे दोन अनाथ जीवों को दया भाव कर कोई न देखेगा | इत्यादि * कोई मुनियों की अवज्ञा करें है सो मलयागिरि चंदन को तंज कर कंटक वृक्ष को अङ्गीकार करे है ऐसा जानकर हे वत्स तूं दान पूजा कर जन्म कृतार्थ कर । गृहस्थी को दान पूजा ही कल्वाणकारी है और समस्त में तत्पर होवो | दया पालो सामनों से मथुरा के लोक धर्म वासल्य धारो | , ·
SR No.010185
Book TitleDharm Jain Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDwarkaprasad Jain
PublisherMahavir Digambar Jain Mandir Aligarh
Publication Year1926
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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