SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर - उन्होंने कुलपति के पास जाकर कुटी की घास खाने देने के बारे में महावीर की शिकायत की। कुलपति ने महावीर को उनकी इस लापरवाही के लिए उपालम्भ दिया। इससे महावीर को खयाल हुआ कि उनके कारण दूसरे तापसो के मन में अप्रीति होती है.इसलिए उनका यहाँ रहना उचित नहीं । उसी समय उन्होने नीचे लिखे पाँच व्रत लिए--(१) जहाँ दूसरे को मप्रीति हो वहाँ नहीं बसना । (२) जहां रहना वहाँ कायोत्सर्ग करके ही रहना (३) सामान्यतया मौन रखना (४) हाथ में ही भोजन करना और (५) किसी गृहस्थ को विनयर न करना । संन्यास ग्रहण करते ही इन्हें दूसरे के मन की बात जान लेने की सिद्धि प्राप्त हुई । इस सिद्धि का उन्होने कुछ उपयोग भी किया। ६. दिगम्बर दशा: पहले वर्ष के अंत में एक बार एक झाड़ी से जाते समय उनका आधा वन काँटों में उलझ गया । छिदे हुए कपड़े को निरुप १-कायोत्सर्ग-काया का उत्सर्ग। शरीर को प्रकृति के अधीन करके.ध्यानस्थ रहना, उसके रक्षण के लिये किसी प्रकार के कृत्रिम उपाय जैसे झोंपड़ी बनाना, कम्बल ओढ़ना, ताप लेना नहीं करना। - २-अपनी आवश्यकता के लिये गृहस्थ के ऊपर अवलम्बित रहनी और उसकी आजिज़ीन करना।
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy