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________________ लाय कि जिससे देह का मान न रहे, श्वासोच्छवास धीमा अथवा बंद हो जाय और मात्र उस वस्तु अथवा विचार का ही दर्शन हो, इसे समाधि शब्द से पहचाना जाता है। उपर कही हुई स्थिति को प्राप्त करने के मार्ग की हठयोग कहते हैं। सिद्धार्थ ने कालाम और उद्रक द्वारा इस हठयोग की समाधि प्राप्त की थी, ऐसा मालूम होता है। इस प्रकार की समाधि से ससाधि-काल में सुख और शांति होती है। समाधि पूरी होने पर वह सामान्य लोगों की तरह ही हो जाता है लेकिन समाधि शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त नहीं होता। और सिद्धार्थ ने अपने ही समाधि-योग से अपने शिष्यों को शिक्षा । दी है। वह हठयोग की समधि नहीं है। जिस वस्तु अथवा भावना के साथ चित्त ऐसा तद्रप हो गया हो कि उसके सिवा दूसरा कुछ देखकर भी उसका कोई असर नहीं हो सकता अथवा सर्वच उसीका दर्शन होता है, उस विषय में चित्त की समाधि दशा कहाती है। मनुष्य की जो स्थिर भावना हो, जिस भावना से वह कभी नीचे नहीं उतरता हो उस भावना में उसकी समावि है, ऐसा समझना चाहिए। समाधि शब्द का धात्वर्थ भी यही है। उदाहरण से यह विशेष स्पष्ट होगा। लोभी मनुष्य जिस जिस वस्तु को देखता है उसमें धन को हो ढूढता रहता है। असर जमीन हो या उपजाऊ, छोटा फूल हो का सुवर्णमुद्रा, वह यही ताकता है कि इसमें से कितना धन मिलेगा।)
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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