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________________ कुछ प्रसंग और निर्वाण शान्ति और सहनशीलता परम तप है, बुद्ध निर्वाण को परम श्रेष्ठ बतलाते हैं। परघाती प्रव्रजित नहीं होता , दूसरे को पीड़ा न देनेवाला ही श्रमण है।' १. ज्ञानकी कसौटी: ___ महापुरुषों के उपदेश यह दर्शाते हैं कि उन्होंने क्या सोचा है, उनके उपदेश से समाज पर होनेवाला असर उनकी वाणी के प्रभाव को बताता है। लेकिन उन विचारों और वाणी के पीछे रही हुई निष्टा उनके जीवन-प्रसंगों से ही जानी जाती है। मनुष्य जितना विचार करता है उतना बोल नहीं सकता और वोलता है उतना कर नहीं सकता। इसलिए वह जो करता है उसपर से ही उनका तत्वज्ञान लोगों के हृदय में कितना उतर पाया है, यह परखा जा सकता है। २. मित्र-भावना : . जो जगत-सम्बन्धी मैत्री-भावना की अपने को मूर्ति बना सकता है, वह बुद्ध के समान होता है, यह कहने में कोई आपत्ति १. खन्ती परमं तपो तितिक्खा निम्बानं परमं वदन्ति बुद्धा। नहि पब्वजितो परूपघाती समणो होति परं विहेठयन्तो।। (धम्मपद ) (५२)
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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