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________________ चौद्ध शिक्षापद - (४) वाणी-संयम : गुरु के बोलते समय उनके बीच में नहीं बोलना चाहिए, परंतु नियमका भंग न हो, ऐसा कुछ गुरु बोलें तो नम्रता से उसका निवारण करना चाहिए। (५) प्रत्यागमन : बाहर से वापस लौटते समय खुद पहले आकर गुरु का आसन तैयार करना । पैर धोने के लिए पानी और पट्टा तैयार रखना । आगे जाकर गुरु के हाथ मे छाता और वेश इत्यादि हो तो ले लेना, घर में से पहनने का वस्त्र दे देना और पहना हुआ वस्त्र ल लेना । यदि वह वस्त्र पसीने से गीला हो गया हो तो उसे थोड़ी देर धूप में सुखाना, लेकिन उसे धूप में ही नहीं रहने देना । वस्त्र की एकत्र कर लेना और ऐसा करते समय फट न जाय, इसकी सावधानी रखना । वस्त्रो को सँवार कर रख देना। (६) भोजन : नाश्ते की तरह भोजन करते समय भी गुरु के आसन, पात्र, भोजन आदि की व्यवस्था करना। और भोजन के उपरांत पात्रादि साफ करना और जगह साफ करना। (७) भोजन के पात्र किसी स्वच्छ पट्ट अथवा चौरंग पर रखना लेकिन नीचे जमीन पर नहीं रखना। () स्नान : यदि गुरु को नहाना हो तो उसकी व्यवस्था फरना। उन्हे ठडा या गर्म जैसा चाहते हो वैसा पानी देना। मदन की ।
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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