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________________ ___ "इस राजा के यज्ञ में गाय, बकरे, मेंढे इत्यादि प्राणी मारे नही गए । वृक्षों को उखाड़कर उनके स्तंभ नहीं रोपे गए। नौकरो और मजदूरों से बेगार नहीं ली गई। जिनकी इच्छा हुई उन्होने काम किया। जो नहीं चाहते थे उन्होने नही किया। घी, तेल, दही, मधु और गुड़ इतने ही पदार्थो से यज्ञ पूरा किया गया। ___"उसके बाद राज्य के श्रीमंत लोग बड़े-बड़े नजराने लेकर आए। लेकिन राजा ने उनसे कहा-'गृहस्थो, मुझे आपका नजराना नहीं चाहिए । धार्मिक कर से एकत्रित हुआ मेरे पास बहुत धन है। उसमें से आपको जो कुछ आवश्यक हो वह खुशी से ले जाइए। __ "इस प्रकार राजा के नजराना स्वीकार न करने पर उन लोगों ने अन्धे-लूले आदि अनाथ लोगों के लिए महाविजित को यज्ञशाला के आसपास चारों दिशा में धर्मशालाएँ बनवाने में और गरीबों को दान देने में वह द्रव्य खर्च किया।" यह बात सुन कूटदंत और दूसरे ब्राह्मण बोले-"बहुत सुन्दर यज्ञ ! बहुत सुन्दर यज्ञ !!" बाद में बुद्ध ने कूटदंत को अपने धर्म का उपदेश किया। सुनकर वह बुद्ध का उपासफ हो गया और बोला, "आज मैं सात सौ वैल, सात सौ बछड़े, सात सौ बछड़ियाँ, सात सौ बकरे और सात सौ मेंढों को यज्ञ स्तंम से छोड़ देता हूँ। मैं उन्हें जीवनदान देता हूँ। ताजा घास खाकर और ठंडा पानी पीकर शीतल हवा में वे आनंद से विचरण करें।"
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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