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________________ उपदेश और विद्वत्ता की अपेक्षा शील श्रेष्ट ठहरता है और उत्तम शील तो सव वर्णों के मनुष्य प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए यह सिद्ध होता है कि जिसका शील उत्तम है वही सब वर्गों में श्रेष्ठ है। बुद्ध भगवान् ब्राह्मण की व्याख्या करते हैं : " संसार के संपूर्ण बंधनो को छेदकर, संसार के दुखो से जो नही डरता, जिसकी किसी भी वस्तु पर आसक्ति नही है, दूसरे मारे, गाली दें, बंधन मे डाछने पर उसे सहन करते हैं, क्पमा ही जिनका बल है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूँ, कमल के पत्तेपर गिरी हुई बूंदो के समान जो ससार के विषय-सुख से अलिप्त रहता है उसे ही मै ब्राह्मण कहता ७. श्रेष्ठ यज्ञः मनोरंजक चौर उपयुक्त, बुद्धि में उतरे ऐसे दृष्टांत और कारणों से उपदेश करने की बुद्ध की पद्धति अनुपम थी। इनका एक ही दृष्टांत यहाँ देना है। युद्ध के समय में यज्ञ में प्राणियों का वध करने का रिज घहुत प्रचलित था। यज्ञ में होनेवाली हिंसा को बंद करने का आन्दोलन हिन्दुस्तान में युद्ध के समय से चला आ रहा है। एक पार कूटदंत नामक एक ब्राह्मण इस विषय में बुद्ध के साथ चर्चा करने के लिए आया। उसने युद्ध से पूछा--" यज्ञ क्या है और बुद्ध के उसकीया । उसने बुद्धम १. देखो पिछली टिप्पणी जठवीं
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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