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________________ उपदेश पाप न माचरो एक, रहो सन्मार्ग में हद । स्वचित्त सदा शोधिए, यह है शासन बुद्धो का.॥ २. आत्मप्रतीति ही प्रमाण है: चारित्र्य, चित्तशुद्धि और देवी सम्पत्ति का विकास ये बुद्ध के उपदेशो में सूत्र रूप से पिरोए गए हैं। लेकिन इस समर्थन में वे वर्ग का लोभ, नरक का भय, ब्रह्म का आनन्द, जन्म-मरण का दुख, भवसागर में उद्धार या कोई भी दूसरी आशा या भय देना या दिखाना नहीं चाहते । वे किसी शास्त्र का आधार भी नहीं देना चाहते । शान, स्वर्ग, नर्क आत्मा, जन्म-मरण आदि, इन्हे मान्य नहीं, ऐसी बात नही है, लेकिन इनपर बुद्ध ने अपना उपदेश नही किया, इन बातो को जो कहना चाहता है उसका महत्व स्वयं सिद्ध है, और अपने विचारो से समझ में माने जैसी हैं, ऐसा अनका अभिप्राय मालूम होता है। वे कहते हैं : "मनुष्यो, मैं जो कुछ कहता हूँ वह परंपरागत है, ऐसा समझ उसे सच न मान लो। अपनी पूर्व परपरा के अनुसार है यह १ सव्व पापस्स अकरणं कुसलस्स उपसम्पदा। । सचित्तपरियोदपनं एतं बुद्धानुसासन !-(धम्मपद)
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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