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________________ बुद्ध - - - ४. फिरसे शोध ः उद्रक मुनिके यहाँ : ___ वह कालामका आश्रम छोड़ उद्रक नामक दूसरे योगी के यहाँ गया। उसने सिद्धार्थको समाधिको आठवी भूमिका मिखाई । सिद्धार्थने इसे भी सिध्द कर लिया। इससे उद्रकने उसका अपने समान हो जाने से बहुत सन्मान किया । ५. पुनः असंतोष: लेकिन सिध्दार्थको अव भी संतोष नहीं हुआ। इससे भी दु:ख रूप वृत्तियों को कुछ काल तक दयाया जा सकता है, लेकिन उनका जड़-मूलसे नाश तो नहीं ही होता। ६. निजी प्रयत्न : सिध्दार्थको लगा कि अब सुखके मार्गको निजी प्रयत्नसे शोधना चाहिए । यह विचार कर. वह फिरते-फिरते गयाके पास उरुवेल ग्राममें आया। ७. देह-दमन : वहां उसने तप करनेका निश्चय किया । उस समय ऐसा माना जाता था कि उग्र रूपसे शरीरका दमन ही तप है । इस प्रदेशमें बहुतसे तपस्वी रहते थे। उन सबकी रीतिके अनुसार सिध्दार्थने भी मारी तर शुरू किया । शीतकालमें ठंडी, ग्रीष्मकालमें गर्मी और वर्मा कालमें बरसातकी धाराएं सहन कर उपवासकर उसने शरीरको अत्यंत कश कर डाला | घंटों तक श्वासोच्छवास रोक वा काठकी तरह ध्यानस्य बैठा रहता । इससे उसके पेटमें भयकर वेदना और शरीरमें दाह होती। उसका शरीर केवल हड़ियोंका ढांचा रह गया | आखिर उसमें उठनेकी भी शाक्ति न रही और एक दिन तो वह मूर्छा खाकर गिर पड़ा। तब एक ग्वालने दुध पिलाकर उसे सचेत किया। लेकिन इतना कष्ट उठाने पर भी उसे शांति न मिली। .
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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