SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (3) रख अपना अभ्युदय साधना ही आज तक की हमारी रीति रही है। यह रीति न्यूनाधिक अंधश्रद्धा यानी बुद्धि न दौड़े. वही. तक ही नहीं परंतु बुद्धि का विरोध करनेवाली श्रद्धा की भी है। विचार के आगे यह टिक नहीं सकती। भिन्न-भिन्न महापुरुषों में यह देव-भाव अधिक दृढ़ करने का प्रयत्न ही सव सम्प्रदायो के आचार्यो, साधुओं, पंडितों बादि के जीवन-कार्य का इतिहास हो गया है। इनमें से चमत्कारों की, भूतकाल में हुई भविष्य-वाणियो की और भविष्यकाल के लिए की हुई और खरी उतरी आगाहियो की आख्यायिकाएँ रची हुई है और उनका विस्तार इतना अधिक बढ़ गया है कि जीवन-चरित्र में से नब्बे प्रतिशत या उससे अधिक पृष्ठ इन्ही बातों से भरे होते हैं। इन बातों का सामान्य जनता के मन पर गेसा परिणाम हुआ है कि मनुष्य में रही हुई पवित्रता, लोकोत्तरशील-संपन्नता, दया आदि साधु और वीर पुरुष के गुणों के कारण उनकी कीमत वह आक नहीं सकती, लेकिन चमत्कार की अपेक्षा रखती है और चमत्कार करने की शक्ति वह महा-पुरुप का आवश्यक लक्षण मानती है। शिला से अहिल्या करनेकी, गोवर्धन को कनिष्ठ उँगली पर उठाने की, सूर्य को आकाश में रोक रखने की, पानी परसे चलने की, हजारो मनुष्यो को एक टोकनी भर रोटीसे भोजन कराने की, मरने के बाद जीवित होने की आदि आदि प्रत्येक महा-पुरुपके चरित्र में आनेवाली बातों के रचयिताओंने जनता को इस तरह मिथ्या दृष्टि-बिंदु की
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy