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________________ अहिंसा के नये पहाड़े १२६ १४. व्याज और मुनाफा: ____एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायगी। बम्बई के किसी फर्निचर बनानेवाले बढ़ई का उदाहरण लीजिए। जिसमें मुख्य चीजें तो लकड़ी, पालिश आदि थोड़ा-सा माल और बढ़ई की मेहनत इतनी ही हैं। लेकिन बढ़ई को औजार चाहिए, माल रखने के लिए दूकान चाहिए और जबतक माल विकता नहीं है, तबतक खाने के लिए खुराक चाहिए। उसके पास औजारों के लिए पैसा नही है । हम अपने बचे हुए पैसे में से उसे व्याज पर पैसे देते हैं। उसके पास लकड़ी वगैरह खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। उसके लिये भी हम उसको व्याजपर पैसे देते हैं। माल रखने के लिये उसके पास दूकान नहीं है। हम अपने मकान का खाली हिम्सा उसे किराये पर दे देते है। जबतक माल नहीं विकता, तबतक के लिये उसके पास खानेपीने का सामान नहीं है। हम उसे व्याज पर पैसे देते हैं। बाद में एक रुपये की लकड़ी वगैरह पर सारा दिन मेहनत करके वह एक कुर्सी बनाता है। हमारे पास अभी बहुत-सा पैसा बाकी है जिसलिये हमारा जी कुसी खरीदने को चाहता हैं और हम उसकी पाँच रुपये कीमत देने के लिये भी तैयार हो जाते हैं। अर्थात एक रुपये के माल पर चार रुपये की मेहनत की गई, ऐसा कहा जा सकता है। परन्तु हम यह जानते हैं कि बढ़ई को सवा या डेढ़ रुपये से ज्यादा रोजी नहीं पड़ती। तब बाकी के ढाई या पौने तीन रुपये किसे मिले ? स्पष्ट है कि वह सूद, दूकान किराया, खाने-पीने के सामान पर नफा आदि के रूप में हमें वापस मिले । इसका यह अर्थ हुआ कि बढई अगर चार रुपये की मेहनत करे, तो उसमें से पौन
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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