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________________ उपदेश अर्थ में उनसे विपरीत सिद्धान्त सच्चे हों, यह भी हो सकता है। उदाहरणस्वरूप "समी जीव समान हैं" एक बड़ा व्यवहार्य सिद्धान्त है लेकिन उसपर अमल करने की कोशिश करते ही यह सिद्धान्त मर्यादित हो जाता है। उदाहरणार्थ, जब ऐसी स्थिति आ जाय कि गर्भ और माता में से कोई भी एक बचाया जा सकता हो, समुद्री तूफान से यदि जहाज टूट जाय और आपद्कालीन नौकाएँ काफी न हों, तब यह प्रश्न उठे कि जितनी हैं उनका फायदा पहले लड़को और स्त्रियों को उठाने देना या पुरुप को, भूख से मरता हुआ वाघ गाय को पकड़ने की तैयारी में हो, उस वक्त यह दुविधा पैदा हो कि गाय को छुड़ाना या नही- ऐसे सर्व प्रसङ्गों में सब जीव समान हैं-के सिद्धान्त का हम पालन नही कर सकते । बल्कि हमें इस तरह बरतना पड़ता है मानो सब जीवो में तारतम्य है, यह सिद्धान्त ही सही है लेकिन इसका अर्थ यह हुआ कि 'सर्व जीव समान हैं। यह सिद्धान्त अमुक मर्यादा और अर्थ में हो सच्चा है। यही बात अनेक सिद्धान्तो के वारे में भी कही जा सकती है। ८. आचार-विचार की मर्यादा : लेकिन बहुत से विचारक और आचारक इस मर्यादा का अतिरेक करते हैं या मयादा को नहीं मानते हैं या स्वीकार करते हुए भी भूल जाते हैं। परिणामतः आचार और विचार में मतभेद या झगड़े होते हैं या फिर ऐसी रूढ़ियाँ स्थापित होती हैं, जिनकी तारीफ नहीं की जा राकती।
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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