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________________ नामक टीका लिखी । उदयन ने न्यायकुसुमान्जलि और 'आत्मतत्व विवेक' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे । न्यायवार्तिक तात्पर्य टीका पर श्री उदयानाचार्य की 'तात्पर्य परिशुद्धि है । जयन्त भतत की 'न्याय मंजरी भी अधिक लोकप्रिय ग्रन्थों की श्रेणी में है । यद्यपि इसमें बौद्धों का खण्डन है फिर भी इसे न्यायसूत्र की विवृति ग्रन्थ माना जाता है । 'न्यायमञ्जरी' के बाद प्राचीन न्याय का संभवतः महत्वपूर्ण ग्रन्थ भासवई का 'न्यायसार' है । इस ग्रन्थ में न्यायशास्त्र को संकलित करने का प्रयास किया गया है । कालक्रमानुसार परवर्ती साहित्य को गंगेश से लेकर यज्ञपति तक की कृतियों को 'नव्यन्याय' की श्रेणी में रखा गया है । १२वीं शताब्दी से नव्यन्याय का प्रारम्भ माना जाता है। इसके सर्वप्रथम आचार्य गंगेशोपाध्याय है इनकी अमरकृति 'तत्वचिन्तामणि' सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। जहां नव्य-न्याय के अन्तर्गत तर्कशास्त्रीय विषयों का विवेचन किया गया है वहां प्राचीन न्याय में तत्वशास्त्र पर जोर दिया गया है । न्याय विचार की उस विधि का नाम है जिसमें वस्तुतत्त्व का निर्धारण करने के लिये सभी प्रमाणों का उपयोग किया जाता है। 'प्रमाणैरर्थ परीक्षणं न्याय: (न्याय भाष्य का प्रथम सूत्र) 'न्याय' शब्द से उन वाक्य के समूहों को भी व्यक्त किया जाता है जो अनुमान के माध्यम से अन्य पुरूष को किसी विषय का बोध कराने के लिये प्रयुक्त होते हैं यह वाद, जल्प और वितण्डा के रूप में विचारों का मूल एवं तत्व निर्धारण का आधार है। न्याय दर्शन की मान्यता है कि ज्ञान स्वरूपतः एक ऐसी वस्तु की ओर इशारा करता है जो उसके बाहर ओर उससे स्वतंत्र है । 'नचाविषया काचिदुषलब्धि' (न्यायसूत्र भाष्य ४, १, ३२) अन्य भारतीय दार्शनिकों की तरह 'न्याय' का भी चरम उद्देश्य 'अपवर्ग' है । अपवर्ग - दुःख की निश्चित और शाश्वत निवृत्ति है । मोक्ष की अनुभूति तत्वज्ञान अर्थात 76
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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