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________________ योगाचार विज्ञानवाद की मान्यता है कि 'विज्ञान ही एक मात्र सत है'विज्ञानमेव सत्यम' | विज्ञानवाद से आशय क्षणिक विज्ञान से है। इसे चित्त भी कहा जाता है यही वास्तविक है इससे भिन्न जो कुछ भी प्रतीत होता है वह विज्ञान का विवर्त है। विज्ञान के अतिरिक्त और किसी पदार्थ की सत्ता नहीं है। योगाचार विज्ञानवाद के प्रवर्तक असंग और वसुवन्धु थे। इस सम्प्रदाय का मुख्य ग्रन्थ 'लंकावतार सूत्र' है। बाद में आगे चलकर दिङनाग, ईश्वरसेन, धर्मपाल, धर्मकीर्ति आदि विद्वानों ने अपना योगदान दिया। विज्ञानवादी बाह्य वस्तुओं की सत्ता का खण्डन करते हैं किन्तु चित्त की सत्ता को स्वीकार करते हैं। ऐसे पदार्थ जो मन से (बाह्य) बर्हिगत प्रतीत होते हैं किन्तु वे मन के ही अन्तर्गत रहते हैं- 'यदन्तेज्ञेय रूपं तद वर्हिवद अवभासते। आस्तिक दर्शन १- न्याय दर्शन न्याय दर्शन की गणना आस्तिक दर्शनों की श्रेणी में किया जाता है। भा० दर्शन का इसे 'तर्कशास्त्र' भी कहा जाता है। न्याय दर्शन के प्रणेता आचार्य 'महर्षि गौतम' को माना जाता है। इनको एक अन्य नाम अक्षपाद से भी जाना जाता है। जिससे इस दर्शन को 'अक्षपाद दर्शन' भी कहते हैं। न्याय दर्शन के विषय में वात्स्यायन ने कहा है कि न्याय विद्या समस्त विद्याओं का प्रदीप है सब कर्मों का उपाय, प्रवर्तक है तथा समग्र धर्मों का आश्रय है। इस प्रकार वात्स्यायन भाष्य में उद्धृत उक्ति से इसकी महत्ता और उपयोगिता ज्ञात होती है। यह उक्ति इस प्रकार है 'प्रदीपः सर्व विद्यानामुपायः सर्वकर्मणाम् । आश्रयः सर्व धर्माणां विद्योदेशेप्रकीर्तिता। (न्या० सू० भाष्य १/१/१) 'न्याय दर्शनम् : पृ० १५ चौखम्बा संस्कृत संस्थान वाराणसी। 74
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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