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________________ १. अहिंसा - 'ज्ञानी होने का सार यही है, कि वह किसी भी प्राणी की हिंसा न करे इतना जानना ही पर्याप्त है, कि अहिंसामूलक समता ही धर्म है अथवा यही अहिंसा का विज्ञान है। सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना नहीं। इसलिये प्राणवध कोभयानक जानकर निर्ग्रन्थ उसका वरण करते हैं। जीव का वध अपना ही वध है । जीव की दया अपनी ही दया है। अतः आत्महितैषी पुरुषों ने जीवहिंसा का परित्याग किया है । २. सत्य - सत्य का अर्थ है मनसा वाचा कर्मणा असत्य का परित्याग करना । स्वयं अपने लिये तथा दूसरों के लिये क्रोधादि या भय आदि के वश होकर हिंसात्मक असत्य वचनों को न तो स्वयं बोलना चाहिये, न दूसरों से बुलवाना चाहिये । ३. अस्तेय— अस्तेय का अर्थ है चोरी का निषेध | ग्राम, नगर अथवा अरण्य में दूसरे की वस्तु को देखकर उसे ग्रहण करने का भाव त्याग देने वाले साधु के तीसरा अचौर्यव्रत होता है । ४. ब्रह्मचर्य - इससे तात्पर्य है 'वासनाओं का त्याग करना । 'ब्रह्मचर्य' का अर्थ साधारणतः इन्द्रियों पर रोक लगाना है। ५. अपरिग्रह - अपरिग्रह का अर्थ है 'विषयासक्ति का अभाव । निरपेक्षभावनापूर्वक चरित्र का भार वहन करने वाले साधु का बाह्याभ्यन्तर, सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग करना, पाचवं परिग्रह त्याग महाव्रत कहा जाता है। इस प्रकार यदि जैन प्रणाली को समग्र रुप से देखें तो हम उसमें पर्याप्त मात्रा में आदर्शवाद पाते हैं किन्तु वह भौतिकवाद के तत्त्वों से भी सम्बद्ध है। यह दर्शन जगत के मूल में अनेक तत्त्वों की सत्ता स्वीकार करता है । बहुतत्ववाद का समर्थक होने के साथ-साथ वास्तववाद का अनुवायी है। जैन मत प्रारम्भ में धर्म के रूप में उदित हुआ किन्तु बाद में यह दर्शन
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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