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________________ पितृऋण से कोई भी मुक्त नहीं हो सका तो मै (अल्पज्ञ) इससे किस प्रकार मुक्त होने के विषय में सोच सकती हूँ। क्योकि जिस स्वर्गादपिगरीयसी, ममतामयी माँ श्रीमती शंकररावती शुक्ला तथा जिस महान पूजनीय पितृचरण श्री मुसाफिर शुक्ल (खण्ड विकास अधिकारी, अवकाश प्राप्त) के स्नेहासिक्त वात्सल्य में मेरा पालन पोषण हुआ, तथा जिन्होने मेरे अध्ययन के प्रति सदैव महत्वपूर्ण प्रेरणाएँ दी, उनके प्रति कृतज्ञता तथा आभार प्रदर्शित करना उनके गरिमा मण्डित स्थान की उपेक्षा मात्र प्रतीत होती है। इसी सन्दर्भ में सर्व प्रथम मै अपने परमं प्रिय सम्माननीय मित्र अनुकरणीय राजेश पान्डेय (जो दुर्भाग्यवश अब हमारे बीच नहीं हैं) के प्रति आजीवन ऋणी हूँ। जिनके प्रेरणास्पद विचारों से ही मुझे शोध प्रबन्ध, अल्प समय में पूर्ण करने में सहायता मिली। उन्हे मै विशेष रूप से नमन करती हूँ। जिनका कि मेरे बाल्य-काल से अध्ययनावधि पर्यन्त अतुलनीय सहयोग एवं उत्साहवर्धन प्राप्त होता रहा। पाण्डेय के प्रति शब्दो में कृतज्ञता ज्ञापित करना मेरे लिए असम्भव है, मात्र औपचारिकता निभाना प्रतीत होता है । शोघ-क्षेत्र में, अपने समस्त सहोदर अग्रजो में परम पूज्य सर्व श्री इन्द्रदेव शुक्ल (आई० पी० एस०, पुलिस अधीक्षक गोवा), श्री प्रमोद कुमार शुक्ल (पी० सी० एस०, उप जिलाधिकारी नरसिंहपुर, मध्य-प्रदेश), श्री सियारा: शुक्ल (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय, इलाहाबाद) के प्रति कृतज्ञता एवं आभार व्यक्त करती हूँ, जिनके परम-त्याग, अमूल्य सहयोग भातृत्व एवं प्रेरणास्पद तथा मार्ग दर्शक विचारों ने मेरे जीवन को सवारने में कोई कसर नही छोड़ी। अपने अन्य भाईयों में श्री जगदम्बा शुक्ल, डा० आर० पी० शुक्ल (एम० डी० लखनऊ) राकेश शुक्ल के प्रति तथा बड़ी-बहन शशि तिवारी एवं जीजा डा० सी० एल० तिवारी, (सहायक सांख्यकीय अधिकारी मऊ), भाभी टी० के० शुक्ला, डा० अनुपम मिश्रा (asst. prof. psy.
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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