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________________ त्याज्य है इसपर चार्वाक का कहना है कि कोई भी चतुर व्यक्ति अन्न खाना इसलिये नहीं छोड़ देता है कि उसमें भूसा लगा है।' ___ चर्वाक परलोक का भी निराकरण करता है। चार्वाक के मत में स्वर्ग और नरक का विचार कल्पना मात्र है क्योंकि चार्वाक के मत में जब शरीर से भिन्न आत्मा ही नहीं है तब स्वर्ग-नरक की प्राप्ति किसे होगी। चार्वाकों का आरोप है कि ब्राह्मणों ने अपने हित और जीवन निर्वाह के लिये स्वर्ग और नरक का भय पैदा किया है जिससे वह अपनी प्रभुता को स्थापित करने में सफल रहें। चार्वाक मानते हैं कि स्वर्ग और नरक का प्रत्यक्षीकरण नहीं होता है अतः इसका अस्तित्व नहीं है। चार्वाकों का विचार है कि यदि थोड़ी देर के लिये स्वर्ग और नरक का अस्तित्व मान भी लें तो वह स्वर्ग और नरक इसी संसार में निहित है। इस संसार में जो व्यक्ति सुःखी है वह स्वर्ग में है और जो दुःखी है वह नरक में है। इसलिये चार्वाक मानते हे "सुखमेव स्वर्गम" "दुःखमेव नरकम्"। अतः इस लोक के अतिरिक्त किसी पारलौकिक जगत की कल्पना करना व्यर्थ है। चार्वाक दर्शन ईश्वर की सत्ता का भी निषेध करता है। और आध्यात्मिक धार्मिक तथा नैतिक मूल्यों को मानसिक भ्रान्ति कहता है। अतः चार्वाक उनके रक्षक के रूप में ईश्वर की आवश्यकता अनुभव नहीं करता है। चार्वाक का मानना है कि सृष्टि का कारण कोई नहीं हो सकता है यह सृष्टि स्वभावतः ही होती है चारों मूल भौतिक पदार्थ आपस में मिलकर समस्त जगत के पदार्थ को उत्पन्न करते हैं। चार्वाक् ज्ञान मीमांसीय तर्क से खण्डन करते हुये कहता है कि, ईश्वर का ज्ञान प्रत्यक्ष के द्वारा नहीं होता है अतः ईश्वर का अस्तित्व नहीं है। चार्वाक ईश्वर को वेद प्रमाणित भी स्वीकार नहीं करता है क्योंकि उसके मत में वेद प्रामाणिक नहीं है अतः वेद में वर्णित ईश्वर का विचार भी प्रामाणिक नहीं है। आधुनिक वैज्ञानिक भौतिकवाद त्याज्यं सुखं विषय .........बीहिन जिहासहति सितोत्ततमण्डुलाढ्यान् 55
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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