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________________ मानता है उनका तर्क है कि 'मैं देखता हूँ', 'मैं सुनता हूँ' इत्यादि क्रिया व्यापारों में इन्द्रिय ही सहाय्य मात्र है अतः इन्द्रिय ही आत्मा है। बार्हस्पत्य सूत्र में कहा गया है ‘पश्यामि श्रृणोमीत्यादि प्रतीत्या मरणपर्यन्तं । यावन्तीन्द्रियाणि तिष्ठन्ति तान्येवात्मा' | | ३६ | । चार्वाक् पन्थी यदि इन्द्रिय को ही आत्मा मानें तो यह भी ठीक नहीं है क्योंकि ‘इन्द्रियाणामुपघाते कथं स्मृतिः । ऐसा खण्डन न्याय सि० मु० ने किया है । अर्थात् “पूर्वचक्षुषा साक्षात्कृतानां चक्षुषोऽभावे स्मरण न स्यात् अनुभवितुरभावात । अन्यदृष्टस्यान्येन स्मरणासम्भवात्”। अतः स्मरणानुपत्ति होने से इन्द्रियात्मवाद भी खण्डित हो जाता है। मनसात्मवादी चार्वाक के अनुसार नित्यमनस् इन्द्रिय ही आत्मा है क्योंकि कभी इन्द्रियादि के अभाव में भी मन का अस्तित्व बना रहता है। जैसे चक्षुरिन्द्रिय के नष्ट हो जाने पर भी उसके द्वारा देखे गये पदार्थों का भान होता है । ' चार्वाक का एक अन्य सम्प्रदाय प्राण को ही आत्मा स्वीकार करता है - "प्राण एव आत्मा”। वार्हस्पति सूत्र ३८ । शरीर में प्राण की ही प्रधानता है क्योंकि इस प्राणवायु के निकल जाने पर शरीर, इन्द्रियां तथा मन निष्क्रिय हो जाते हैं। श्रुति भी कहती है"अन्योतर आत्मा प्राणमयः " ( तै० ३०२ /२/१)। चार्वाक् “चैतन्य विशिष्ट देह ही आत्मा है" इस तथ्य के प्रति दृढ़ तर्क देते हैं कि यदि शरीर से भिन्न कोई आत्मा है जो शरीर से निकलकर परलोक चला जाता है तो वह अपने बन्धु-बान्धवों के करूण क्रन्दन को सुनकर वापस क्यों नहीं आता है जब कि आ जाना चाहिये । विद्वानों का मत है कि सभी चार्वाक्, आत्मा और शरीर की अभिन्नता में विश्वास नहीं करते हैं ये लोग चार्वाक् को दो रूपों में वर्गीकृत करते हैं १- धूर्त चार्वाक्, २- सुशिक्षित चार्वाक् । " इतरेन्द्रिया हा भावेऽसत्वात् मन एवात्मा ।। ३७ ।। 53 1
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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