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________________ इस प्रकार चार्वाकों का तर्क था कि ज्ञान का एकमात्र विश्वसनीय श्रोत प्रत्यक्ष है। दूसरे शब्दों में चार्वाक कहते थे कि ऐसी कोई चीज जो हमारे संज्ञान से परे है सत्य अथवा यथार्थ नहीं है। के० दामोदरन नें अपने ग्रन्थ 'भारतीय चिन्तन परम्परा' में लिखा है कि- 'लोकायत् सिद्धान्त का उद्भव ऐसे काल में हुआ था जब ब्राह्मण पुरोहित अनुमिति और शब्द जैसेअपने प्रमाणों को बलि, यज्ञ, कर्मकाण्डों आदि को न्यायसंगत सिद्ध करने के लिये इस्तेमाल कर रहे थे। उनसे लोहा लेना लोकायत् दर्शन के अनुयायियों के लिये जरूरी हो गया था । और उनका कारगर ढंग से मुकाबला करने के लिये ज्ञान के श्रोतों के बारे में उनकी अवधारणा के विरूद्ध संघर्ष करना भी जरूरी था । फलतः उन्होंने ज्ञान के भौतिकवादी सिद्धान्त का विकास किया ।' तत्त्वविचार चार्वाक् दर्शन में पृथ्वी, जल, तेज, वायु, इन्हीं चार तत्त्वों की सत्ता स्वीकार की गयी है। आकाश को तत्त्व के रूप में नहीं माना गया है क्योंकि आकाश का प्रत्यक्ष नहीं होता है यह केवल अनुमान पर आश्रित होता है अतः आकाश तत्त्व नहीं है। ये चारों तत्व जड़ या भौतिक हैं और इन्हीं के संयोग से ही शरीर, इन्द्रिय, विषय आदि सबकी सृष्टि होती है 'पृथिव्यातेजोवायुरिति तत्वानि । तत्समुदायेशरीरेन्द्रिय विषयसंज्ञा ||२ (वार्हस्पत्य सूत्र) और इन्हीं भौतिक तत्वों के संयोग से चैतन्य उत्पन्न होता है । " तैभ्यैश्चैतन्यम्" - (१/३ बार्ह० सूत्र) । इन चार भूत पदार्थों के संयोग से चैतन्य स्वयं उत्पन्न हो जाता है जैसे दुकता मादकता के उत्पादक अन्न या वनस्पति आदि के रस से निर्मित स्वयं आ जाती है— ‘किण्वादिभ्यो मद्शक्तिवत् चैतन्यमुपजायते। १४ 1 के० दामोदरन - भारतीय चिन्तन परम्परा । पृ० ११६ 51 377460 7036 प्रका (वार्ह० सूत्र ) 900८. WWWL MT-1208 | J
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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