SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णित है। शङ्कर प्राग षोडश वेदान्ताचार्य तथा उनके सिद्धान्त का वर्णन किया गया है। इनमे सात आर्ष वेदान्ताचार्य आत्रेय आष्मरथ्य, औडुलोमि, कर्णाजिनि, काशकृत्स्न, जैमिनि, वादरायण जिनका अद्वैतवाद का सिद्धान्त यत्र-तत्र अव्यवस्थित रूप से वर्णित मिलता है। खण्ड (ग) में शंकराचार्य के प्राग वेदान्ती आचार्य और अद्वैतवाद का व्यवस्थित इतिहास का वर्णन किया गया है। इसमें किसी का सिद्धान्त युक्ति-युक्त नहीं प्रतीत होता है, और यहां तक भी नही किसी किसी का सिद्धान्त श्रुति सम्मत और तर्क सम्मत भी प्रतीत नही होता है। चतुर्थ अध्याय मे शङ्कराचार्य का संक्षिप्त जीवन परिचय तथा उनके पूर्व भारत की स्थिति आचार्य शङ्कर का व्यक्तत्व और उनकी कृतिया मंडन मिश्र और शङ्कर शााथ, शङ्कर की भारतीय का शााथ आदि का तथा अन्त में शङ्कर सिद्धान्त ब्रह्म-विचार, जीव-विचार, अविद्या, माया, मोक्ष आदि का वर्णन किया गया है। अध्याय-पाँच मे शङ्कराचार्य के उत्तरवर्ती आचार्य और उनको सिद्धान्त यथा- सुरेश्वरचार्य, पद्मपाद, वाचस्पति मिश्र, सर्वज्ञात्ममुनि, प्रकाशात्मायति, चितसुखाचार्य, अमलानन्द, ब्रह्मानन्द सरस्वती, श्रीहर्ष आदि आचार्यों का वर्णन तथा उनके सिद्धान्तो का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया है। षष्ठम अध्याय में मुख्य सिद्धान्तों भामती प्रस्थान, विवरण प्रस्थान, कार्तिक प्रस्थान और वाध प्रस्थान के सिद्धान्तों का तुलनात्मक वर्णन किया गया है। और अन्त मे उपसंहार का वर्णन किया गया है। ग्रन्थ के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि आचार्य शङ्कर के आविर्भाव से पूर्व अद्वैत वेदान्त का बीज रूप वेदों, उपनिषदों, ब्राह्मण आरण्यकों, आदि में भी प्राप्त था। और शङ्कर से पूर्व योग वाशिष्ठ तथा अन्य प्राग् अद्वैत वेदान्ती आचार्यों का मत अद्वैत वेदान्त से सम्बद्ध था, किन्तु अद्वैतवाद का जो बीज पूर्व रूप से विद्यमान था उसको उचित वातावरण में विकसित करने का प्रयास अचार्य शंकर ने किया। अद्वैत वेदान्त मानव चरित्र को नैतिकता की
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy