SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह एक मात्र ब्रह्म की ही परमसत्ता को स्वीकार करते हैं। जो कि निर्गुण, निराकार, निरवयव है। शङ्कर सिद्धान्त की मुख्य विशेषता है कि इन्होंने जगत को मायाकृत प्रपञ्च मात्र माना और जीव तथा ब्रह्म को भिन्न न मानकर अभिन्न रूप में स्वीकार किया और यह भी मानते थे कि मोक्ष के समय जीव ब्रह्म में लीन हो जाता है। इनके सिद्धान्त के व्यवहारिक पक्ष पर यदि घ्यान दिया जाय तो स्पष्ट होता है कि यह व्यवहारिक पक्ष में कर्म सन्यास का प्रतिपादन करते हैं और एकमात्र ज्ञान को ही मोक्ष का साधनरूप मानते हैं। इस सिद्धान्त का सबसे प्राचीन प्रतिपादन गौडपाद की कारिका (माण्डूक्य कारिका) में मिलता हैं। जिसका प्रकट अभिप्राय तो माण्डूक्य उपनिषद् के उपदेशों को ही संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना था किन्तु इसने वस्तुतः अद्वैत वेदान्त को प्रशंसनीय ढंग से प्रस्तुत करके इसके लिए 'अद्वैत वेदान्त' एक बहुत बड़ा काम किया उपसंहार के रूप में उन तथ्यों का उल्लेख करना अनुचित न होगा जिसके कारण यह दर्शन इतना अधिक लोकप्रिय एवं जन समर्थित रहा है। ___ सर्वप्रथम हम कह सकते है कि वेदान्त दर्शन में जीवन का जो सर्वोच्च आदर्श प्रस्तुत किया गया है। वह निर्विवाद रुप से सर्वोच्च आदर्श है। पूर्ण सच्चिदानन्द की अखण्ड और शाश्वत उपलब्धि और वह भी इसी जीवन में संभव बताना इस दर्शन की सबसे बड़ी बिशेषता है। कोई भी साधक इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। सगुण ईश्वर के सानिध्य और साक्षात्कार की तुलना में ब्रह्म या परमं या सत से तादात्म्य प्राप्त करना कहीं ऊँची बात है। अपने सीमित अहं से ऊपर उठाकर सर्वव्यापी अहं प्राप्त करना जीवन की बहुत उपलब्धि मानी जायेगी । 363
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy