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________________ द्वारा ब्रह्म साक्षात्कार हो जाता है। ऐसा विवरण सम्प्रदाय का मत है। अर्थात् वेदान्तवाक्य जन्य अपरोक्ष ज्ञान से ही अज्ञान के नाश होने पर ही अनर्थो से मुक्ति संभव है। भामतीप्रस्थान वेदान्त वाक्य जन्यज्ञान को अपरोक्ष ज्ञान नहीं स्वीकार करता। उनके अनुसार “तत्वमसि' आदि वेदान्तवाक्यजन्य ज्ञान शब्दज्ञान है और शब्दज्ञान परोक्षज्ञान होता है। वेदान्तवाक्य श्रवण के अनन्तर कर्म और उपासना की सहकारिता से अविद्यानिवृत्ति होती है। विवरण प्रस्थान के अनुसार शब्द से ही अपरोक्ष ज्ञान होता है। वह “दशमस्त्वमसि” वाक्य से खोया हुआ दशम व्यक्ति के अपरोक्ष का उदाहरण प्रस्तुत करते है। शब्दापरोक्षवाद के पक्ष में विवरण सम्प्रदायाचार्यों ने अनुमानादि प्रमाण भी प्रस्तुत किये है' किन्तु भामती प्रस्थान के आचार्यों ने शब्दापरोक्षवाद का प्रत्याख्यान करते हुये विवरण सम्प्रदाय द्वारा प्रस्तुत अनुमान में दोषों का प्रदर्शन किया है। परन्तु विवरणपन्थी आचार्य चित्सुख ने अनेक युक्तियों और तर्को से उन दोषों का निराकरण किया है। उनका कहना है कि “दशमस्त्वमसि' कहने पर यहां तक अपरोक्ष ज्ञान होता है कि अन्ध व्यक्ति को भी सुनते ही दशम व्यक्ति के रूप में अपना साक्षात्कार हो जाता है। सुरेश्वर का अद्वैतवाद और शङ्कराचार्य का अद्वैतवाद आचार्य सुरेश्वर का अद्वैत-विषयक सिद्धान्त भगवत्पाद शङ्कर के सिद्धान्तों से भिन्न रहा है। शङ्कर के मत में आत्मदर्शन के तीन साधन है- श्रवण, मनन, निदिध्यासन। जैसा कि बृहदारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैत्रेयी से कहा है- 'आत्मावाऽरे द्रष्टव्यः श्रोतब्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रेयि।' । विमतं शाब्दज्ञानम् अपरोक्षम्, अपरोक्षविषयात्वात् सुखज्ञानवत् (चित्सुखी, पृ० ३३३) 348
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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