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________________ अर्थात् हे नैयायिक! खण्डन खण्ड खाद्य में शतधा भेद का खण्डन किये जाने पर भी आप सोते न रहे, कैवल्य से आपका पतन न हो, अतएव मेरी सदयुक्तियों को सुनकर अभेदवाद को स्वीकार करो और मोक्ष के लिए प्रयत्न करो। भेद को लेकर विवाद इस बिन्दु पर है कि भेद औपाधिक है या परमार्थिक। नैयायिक, माध्व वेदान्ती भेद को परमार्थिक मानते है जब कि अद्वैत वेदान्ती औपाधिक मानते है। क्योकि इनके मत में एक मात्र ब्रह्म को ही सत् माना जा सकता है। नृसिंहाश्रम (१६वीं शताब्दी) नृसिंहाश्रम मुनि एक महान अद्वैतवेदान्ती थे। इनका समय १६वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है।' नृसिंहाश्रम मुनि गीर्वाणेन्द्र सरस्वती और जगन्नाथ आश्रम के शिष्य थे। उनके शिष्य नारायण आश्रम तथा धर्मराज अध्वरीन्द्र थे। धर्मराज ने वेदान्त परिभाषा से सम्बन्धित ज्ञानमीमांसीय ग्रन्थ की रचना की है। नृसिंहाश्रम उद्भव दार्शनिक एवं प्रौढ़ पण्डित थे। इन्होंने भावप्रकाशिका (विवरण की टीका), तत्व विवेक, भेद धिक्कार, अद्वैत दीपिका, वैदिक सिद्धान्त संग्रह एवं तत्वबोधिनी की रचना की थी। इसके अतिरिक्त अद्वैत पञ्चरत्न, अद्वैतबोध दीपिका, अद्वैतवाद, वाचारम्भण, वेदान्ततत्व विवेक आदि ग्रन्थों की रचना करके नृसिंहाश्रम ने निश्चय ही दर्शनशास्त्र के लिए एक विलक्षण योगदान दिया है। नृसिंहाश्रम ने संक्षेपशारीरक पर तत्वबोधिनी तथा पंचपादिका विवरण पर पंचपादिका विवरण नामक व्याख्याएं लिखी है। अद्वैत दीपिका पर नृसिंहाश्रम के शिष्य नारायण आश्रम ने अद्वैतदीपिका विवरण नामक टीका लिखी, इसमें दो परिच्छेद है- प्रथम परिच्छेद का नाम साक्षिविवेक है और दूसरा परिच्छेद विभाग प्रक्रिया है। यह ग्रन्थ अद्वैत वेदान्त का एक मानक ग्रन्थ हे। 'नृसिंहाश्रम का यह समय वेदान्तां कल्याण के आधार पर किया गया है। 325
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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