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________________ सरस्वती कहलाये और काशी के चौसठी घाट पर अपने गुरु के साथ निवास करने लेंगें। यद्यपि सन्यास मार्ग में जाने के पश्चात् उन्होंने वेदान्त मत को अतिपुष्ट किया, तथापि वे कृष्ण भक्त थे और भक्ति को ही परम पुरूषार्थ मानते थे। उन्होंने 'भगवद्भवितर सायन' ग्रन्थ में भक्ति का अत्यन्त प्रौढ शास्त्रीय विवेचन किया है। स्थितिकालः श्री मधुसूदन सरस्वती का समय सोलहवीं शती का पूर्वार्द्ध है। पं० गोपीनाथ कविराज ने उनके समय के बारे में तीन मत दिये है १. कुछ लोगों का मन्तव्य है कि इनका समय १५४० से १६२३ ई० के बीच है। २. किन्तु कुछ अन्य लोग कहते है कि उनका समय १५५५ ई० से १६१५ई० तक थे। ३. अन्त में कुछ लोग कहते है कि उनका समय १५७० से १६४० ई० के मध्य का है। वे गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे। रामचरित मानस के बारे में उनका यह श्लोक बहुत प्रसिद्ध है आनन्दकानने काश्यां तुलसी जङ्गमस्तरुः । कविता कामिनी यस्य रामभ्रमर भूषिता ।। सम्राट अकबर का अर्थ सचिव टोडरमल मधुसूदन सरस्वती का मित्र था। उन्होंने मधुसूदन सरस्वती का सम्मान अकबर के दरबार में करवाय था। वहां उपस्थित सभी पण्डितों ने एकमत से स्वीकारा वेत्ति पारं सरस्वत्या मधुसूदन सरस्वती। मधुसूदन सरस्वत्याः पारं वेत्ति सरस्वती।। अकबर का शासन काल १५५६ से १६०५ ई० तक है अतः मधुसूदन सरस्वती का समय सोलहवीं शदी का उत्तरार्द्ध ज्ञात होता है। 319
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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