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________________ इसी न्याय के अनुसार अप्पय दीक्षित अद्वैतवाद को सिद्ध करते है वे कहते है कि भेद रहने पर भी भगवान् अपनी शक्ति के कारण एक है और उसके अभेद में कोई दोष नहीं हैं। प्राबल्यं भवतोऽयभेद वचसा भेदश्रुतिभ्यो मतम् । नो चेदन्नमयादयो वद कथं भिन्नं भवेयुर्न ते।। भेदे सत्यपि युज्यते हि भगवच्छक्त्यैव निर्दोषता। शक्तः किं न स एक एव बहुधा भिन्नोहरिः कीडितुम् ।। (मध्वतंत्र मुखमर्दन, श्लोक ६०) सिद्धान्त लेशसंग्रह के प्रणेता अप्पय दीक्षित का नव्य वेदान्त में एक अद्वितीय महान योगदान है। सिद्धान्त लेश संग्रह अद्वैतवेदान्त का एक प्रकार का इतिहास है। शङ्करोत्तर अद्वैतवेदान्त को समझने के लिये बहुत लाभदायक है। अप्पय दीक्षित श्रेष्ठ विद्वान होने के साथ एक लेखक तथा महान अद्वैत वेदान्ती थे। अलंकारशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, पूर्वमीमांसा, पूर्वोत्तरमीमांशा, काव्य, शैवमत, वेदान्त, शाङ्करमत, रामानुजमत और माध्वमत आदि पर उनकी अन्य रचनाएं भी है जिसमें से लगभग ४५ रचनाओं का उल्लेख ‘मध्वतंत्र मुखमर्दन' की प्रस्तावना में किया गया है। श्री मधुसूदन सरस्वती ने अद्वैत सिद्धि में अप्पय दीक्षित को सर्वतन्त्र स्वतंत्र कहकर सम्मान दिया है 'सर्वतंत्र स्वतन्त्रैर्भामतीकार कल्प तरुकार परिमलकारैः ।' सिद्धान्तलेश संग्रह की रचना १५४७ के बाद हुई थी और कनकाभिषेक १५८२ में हुआ था। ये काशी में भी कुछ दिन तक रहे थे वैसे इनका अधिकांश समय दक्षिण भारत में चिदम्बर में बीता। ये नृसिंहाश्रम से बहुत प्रभावित थे। काशी में पं० जगन्नाथ अप्पय दीक्षित के विरोधी थे क्योंकि सिद्धान्त कौमुदी' और मनोरमा के रचनाकर भट्टोजी 317
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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