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________________ श्री अप्पय दीक्षित (१५५० ई० १६२२ ई०) श्री अप्पय दीक्षित सुविख्यात मनीषियों में से एक है। सुप्रामाणिक साक्ष्यों के अनुसार उन्होंने ऐसी व्युत्पन्न वंश परम्परा में जन्म लिया जिसमें ज्ञानगरिमा का स्रोत अनवरत् प्रवाहित हो रहा था। उनके पितामह 'न्याय चिन्तामणि' के प्रणेता श्रीमद् आचार्य दीक्षित थे। जिन्हे वक्षस्थलाचार्य दीक्षित भी कहा जाता है। आचार्य दीक्षित की दो पत्नियों में 'तौतारम्भा' नामक पत्नी से चार पुत्र हुये जिनमें से ज्येष्ठ रंगराजध्वरि थे। रंगराजध्वरि के दो पुत्रों में हमारे अप्पय दीक्षित है। इनका संकेत अप्पय दीक्षित ने 'न्यायरक्षामणि' के पद्यों में किया है आसेतु बन्धततमा च तुषार शैला इति प्रथिताभिधानम् । अद्वैतचित्सुख महाम्बुधिमग्नभावं अस्मत्पितामहम् शेष गुरुं प्रपद्ये।। इतिहासविदों ने अप्पय दीक्षित का समय १५२० से १५६३ ई० तक निश्चित किया है। पं० अप्पय दीक्षित का जन्म काञ्ची के समीप 'अडपप्पल गांव में हुआ था। अभी तक उस गांव में इनके कुछ वंशज विद्यमान है। रंगराजध्वरि जो अप्पय दीक्षित के पिता थे वे बहुत बड़े विद्वान थे। सिद्धान्त कौमुदी' के विख्यात रचयिता भट्टोजीदीक्षित ने भी 'सिद्धान्त कौमुदी' की रचना के बाद दक्षिण में जाकर अप्पय दीक्षित से पढ़ा था। इसके बाद उन्होंने “तत्त्वकौस्तुभ” नामक ग्रन्थ लिखा है। जिसमें अपने गुरु अप्पय दीक्षित को ही प्रणाम किया है। अप्पय दीक्षित ने अपने जीवन काल में १०० से भी अधिक ग्रन्थों की रचना किये थे। ऐसा प्रमाण मिलता है। क्योंकि राम के आगे “चतुरधिकशतप्रबन्ध निर्वाहकाचार्य' अर्थात् एक सौ चार ग्रन्थ के निर्माण करने वाले आचार्य, यह उपाधि लगी हुई कहीं-कहीं मिलती है। दीक्षित जी का सब शास्त्रों में अप्रतिहत पांडित्य था और उनकी प्रतिपादन शैली विलक्षण थी। ये परम आस्तिक थे। इनका गोत्र भारद्वाज था। ये ७२ वर्ष की आयु तक ही जीवित रहे। 314
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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