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________________ यथा- आत्मा पञ्चकोशव्यतिरिक्त है, इसे अध्यारोप- अपवाद द्वारा सिद्ध किया गया है। तत्व विवेक नामक प्रथम प्रकरण में आत्मा को अन्वय- व्यतिरेक के माध्यम से सिद्ध किया गया है साक्षी अन्वयव्यतिरेकाभ्यां पञ्चकोशविवेकतः । स्वात्मानं तत् उद्धृत्य परं ब्रह्म प्रपद्यते । । तत्वविवेक ३७) विद्यारण्य ने पञ्चदशी के कूटस्थ दीप, नाटकदीप एवं चित्रदीप प्रकरण के अन्तर्गत साक्षी का वर्णन किया गया है। कूटस्थदीप प्रकरण के अन्तर्गत साक्षी की व्याख्या इस प्रकार है- स्थूल और सूक्ष्म शरीर का अधिष्ठान भूत कूटस्थ चैतन्य अपने अवच्छेदक उक्त दोनों शरीरों का साक्षात् दृष्टा कर्तृत्व आदि विकारों से शून्य होने के कारण साक्षी है । ' नाटक दीप प्रकरण के अन्तर्गत साक्षी का विवेचन नृत्यशाला में स्थित दीपक के दृष्टान्त के आधार पर किया गया है। जिस प्रकर दीपक स्वम्यादि के अभाव में भी सभी को समान रूप से प्रकाशित करता है उसी प्रकार साक्षी भी अहंकार, बुद्धि तथा विषयों को प्रकाशित करता है और अहंकारादि के अभाव में भी सुषुप्ति अवस्था में पूर्ववत् साक्षी को भी प्रकाशित करता रहता है। २ चित्रदीप प्रकरण में साक्षी का विवेचन आकाश के दृष्टान्त के आधार पर दिया गया है । ब्रह्म - जीव- ईश्वर के सम्बन्ध को बताते हुये चित्रदीप में कहा गया है कूटस्थो ब्रह्म जीवेशावित्येवं चिच्चतुर्विधा । घटाकाश महाकाशौ जलाकाशाभ्रखे यथा । । सिद्धान्तलेश संग्रह, पृ० १८० २ पञ्चदशी - १०/११, १२ 3 पञ्चदशी - ६/१८. २२ 311
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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