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________________ नहीं हो पाता है। उसके बारे में स्वयं टीकाकार शङ्कर मिश्र कहते है कि इसमें खण्डन खण्ड खाद्य की कठिन गुत्थियाँ खोली गयी है “ग्रन्थग्रथिविमोचनाय रचना वाचामिमं शाङ्करी” इन टीकाकारों में गोकुल नाथ उपाध्याय तथा अभिनव वाचस्पति ने श्री हर्ष का स्पष्ट खण्डन किया और न्याय दर्शन को उनके खण्डन से मुक्त किया है। शङ्कर मिश्र ने भी कहीं-कहीं खण्डन खण्ड खाद्य का खण्डन किया है अभेदवाद का तिरस्कार किया है और भेदसिद्धि की है। भेदरत्न प्रकाश नाम से उन्होंने एक स्वतंत्र ग्रन्थ भी लिखा है जिसमें भेदवाद को सिद्ध किया गया है। सर्वप्रथम उन्होंने ही खण्डन खण्ड खाद्य के खण्डन सूत्रपात किया। उपर्युक्त खण्डन खण्ड खाद्य के टीकाकारों को तीन कोटियों में बांटा जा सकता है। पहली कोटि में शङ्कर मिश्र, गोकुल नाथ उपाध्याय तथा अभिनव वाचस्पति मिश्र आते है जिन्होंने खण्डन खण्ड खाद्य का खण्डन करके न्यायदर्शन का पक्ष प्रस्थापित किये है। दूसरी कोटि में चित्सुख, आनन्दपूर्ण, चिद्यासागर और साधु मोहनलाल जैसे अद्वैतवेदान्ती आते है। जिन्होंने खण्डनखण्डखाद्य का समर्थन किया है। तीसरी कोटि में नैरयायिक आते है जैसे भवनाथ, रघुनाथ भट्टाचार्य, रघुनाथ शिरोमणि, सूर्य नारायण शुक्ल, प्रगल्भ मिश्र आदि जिन्होंने न्याय दर्शन का विकास अद्वैत वेदान्त की तरफ किया है और इसका आधार खण्डनखण्डखाद्य को बनाया है। इस पुस्तक में 'खण्डन' का प्रयोजन मुमुक्षुओं के लिए तत्व ज्ञान में साधनभूत मनन बतलाकर ग्रन्थकर ने विजिगीषु रागी पुरुषों के लिए दिग्विजयरुप फल बतलाया है। _इस ग्रन्थ में खण्डन में 'प्रमाण प्रमेय संशय प्रयोजन' इत्यादि प्रथम न्याय सूत्र का ही खण्डन किया है इसमें वादी मुख्य रूप से नैय्यायिक है इसमें प्रतिवादी 304
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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