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________________ की सिद्धि के लिए विविध भ्रम सिद्धान्तों का खण्डन करके अनिर्वचनीय ख्याति की स्थापना करते है। इसकी सिद्धि में विमुक्तात्मा ने लिखा है- 'सत्वे न भ्रान्तिबाधौ स्तां नासत्त्वे ख्यातिबाधकौ। सदसदभ्याम् निर्वाच्या विद्या वेद्यैस्सह: भ्रमाः ।।" उन्होंने लिखा है कि रज्जु सर्प अथवा शुक्ति-रजत में सर्प अथवा रजत सत नहीं हो क्योंकि उसका ज्ञान से बाध हो जाता है असत् भी नहीं है क्योंकि उसकी (सर्प, रजत) प्रतीति होती है। अतः सद्सद् से भिन्न अर्थात् अनिर्वाच्य है। अनिवर्चनीय ख्यातिवाद में भ्रम के आवरण तथा विक्षेप दोनों पक्षों की व्याख्या हे। इसी कारण अविद्या निवृत्ति को पंचम प्रकार मानते है। विमुक्तात्मा अपने ग्रन्थ के अन्त में वर्ण्यविषय का उपसंहार इस प्रकार करते है सर्वेष्ट: परमानन्दो वेदान्तात्म प्रमाणकः । इत्येषोऽर्थो विशेषेण मयेष्टो वेदमिन्वतः ।। २७ ।। अर्थश्चायम् निर्वाच्या यद्विद्या प्रसिध्यति। व्ययचीरम विद्यां तामत् इष्टार्थ सिद्धये ।। २८ ।। इस प्रकार मधुसूदन सरस्वती ने 'अद्वैतसिद्धि' में इष्टसिद्धि का उल्लेख किया श्री हर्ष (१२वीं शताब्दी) __ श्री हर्ष एक युगान्तकारी कवि एवं दार्शनिक दोनों ही थे। इनका नाम अद्वैतवाद के इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। अद्वैतवेदान्त में उन्होंने एक क्रान्ति की है जिसके दो पहलू इतिहास प्रसिद्ध है १. उन्होंने अद्वैतवेदान्त में एक नये प्रस्थान की स्थापना की, जिसे बाध प्रस्थान कहा जाता है। उनका ग्रन्थ 'खण्डन-खण्ड खाद्य' इस प्रस्थान की बाइबिल है। इसके * इष्टसिद्धि १/६ 298
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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