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________________ अध्यास शङ्कराचार्य ने ब्रह्मसूत्र शाङ्कर भाष्य में अध्यास के तीन लक्षण दिये हैजिनमें कोई तात्विक भेद नहीं है। प्रथम लक्षण के अनुसार- 'अध्यासो नाम स्मृतिरूपः परत्र पूर्व दृष्टावभासः ।' अर्थात् अध्यास अवभास है, जो भासित हो रहा है वह उत्तर ज्ञान से निरसित हो जायेगा। यथा- रज्जु में सर्प की प्रतीति। द्वितीय लक्षण के अनुसार– 'अन्यस्य अन्यधर्मावभासता' अर्थात् किसी अन्य वस्तु का किसी अन्य वस्तु के धर्म के रूप में अनुभासित होना है। यथा सीपी में रजत का भान तृतीय लक्षण है'अतस्मिन तद्बुद्धिः' । अर्थात् अध्यास- 'अतद' में तद् का मिथ्या भान है। यह असत् का सत् पर आरोप है। यह सत् और असत् का, सत्य और अनृत का, मिथुनीकरण है। अध्यास ही माया का हेतु है यदि अध्यास का निराकरण हो जाय तो माया का स्वतः निराकरण हो जायेगा। अविद्या के कारण शुद्ध आत्मत्व पर अनात्मा का तथा देहेन्द्रियान्तःकरणादि अनात्मधर्मो का अभ्यास होते ही यह शुद्ध साक्षि चैतन्य जीव या प्रमाता के रूप में प्रतीत होता है यही अध्यास है। यह अनादि, अनन्त, नैसर्गिक तथा मिथ्याज्ञानरूप अध्यास सारे अनर्थो का मूल कारण है। अद्वैत आत्मतत्व के अपरोक्ष ज्ञान से इसका नाश होता है तथा वेदान्त शास्त्र प्रारम्भ होता है-अविद्या और माया में मुख्य भेद है कि अविद्या ज्ञानमीमांसीय और माया तत्वमीमांसीय संम्प्रत्यय है। माया ईश्वर की शक्ति है श्रुति और स्मृति में उसी को प्रकृति कहा गया है वह संसार का बीज है। शंकर कहतेहै-'सर्वज्ञस्य ईश्वरस्य आत्मभूतइव अविद्याकल्पिते, नाम रुपेतत्वान्यत्वाभ्याम निर्वचनीये संसारबीज भूते च श्रुति स्मृत्योरभिलप्यते । (शारीरक भाष्य २/१/४) स्वामी 'शाङ्कर भाष्य ब्रह्मसूत्र, उपोद्धात २ वही अत्यन्त विविक्तयोधर्मधर्मिणोः मिथ्याज्ञाननिमितः सत्यानृत मिथुनीकृत्य 'अहमिदम्, ममेदम्' इति नैसिर्गिकोऽयं लोकव्यवहारः। एवं लक्षणमध्यास पण्डिता अविद्येति मन्यन्ते, तद्विवेकेन च वस्तुस्वरुपावधारणं विद्यामाहुः। वही। * वही,- अस्यानर्थ हेतो प्रहाणाय आत्मैकत्व विद्याप्रतिपत्यये सर्वे वेदान्ता आरम्भयन्ते। 270
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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