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________________ इन्हें जीतूंगी। भारती ने पूछा- काम की कलाएं कितनी है? इसका स्वरूप कैसा है, किस स्थान पर वे निवास करती है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में उनकी स्थिति कहां-कहां रहती है आदि। इस पर आचार्य शङ्कर ने कहा इस विषय में मुझे एक मास की अवधि दीजिये। हे सुन्दरी! इसके बाद तुम कामशास्त्र में अपनी निपुणता छोड़ दोगी। बाद में जब शंकराचार्य आये तब उभयभारती ने कहा हे भगवन्! आप सदाशिव है, ब्रह्मा के भी अधिपति है, सभी देवताओं और प्राणियों के भी अधिपति है। कौमारि, आप सभी विद्याओं के अधिपति तथा सर्वज्ञ है। आपने सर्वज्ञ होते हुये भी शास्त्रार्थ में मुझे पहले नहीं पराजित किया। अवधि मांगकर आपने जगत के मर्यादा की रक्षा किये है। हम लोगों के लिये यह शर्म की बात नहीं है। सूर्य की प्रचण्ड ज्योति के सामने तारे और चन्द्रमा की ज्योति (फीकी) मन्द पड़ जाती है। ऐसा कहकर वे संसार छोड़ने के लिये उद्यत हुई और शङकराचार्य ने प्रार्थना किया कि भविष्य में मैं ऋष्यश्रृंग में मन्दिर की स्थापना कराऊँगा आप उसमें अपनी शक्ति से प्रत्यक्ष निवास करें और भक्तजन की मनोकामनाएं पूर्ण करती रहें। ७. शांकर दर्शन के स्रोत आचार्य शङ्कर का सिद्धान्त कोई अभिनव सिद्धान्त नहीं था। वह तो वेद प्रतिपादित निर्दोष वेदान्त शास्त्रीय सिद्धान्त के प्रतिपादक रहे है। श्रुति प्रतिपादित अद्वैत मार्ग के पथ-प्रदर्शक मात्र थे। इसको नया शांङ्कर सिद्धान्त देना एक भ्रान्ति थी, और है। शुद्ध ब्रह्मवाद ही उनका सिद्धान्त है। वे जीवन भर वेद एवं उपनिषदों की पूजा करते रहे। अतएव उनके विचारों पर वेदों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है और यह उनकी सभी कृतियों में समान रूप से परिलक्षित भी होता है। यह हमारा दृढ़ विश्वास है कि शङ्कर के धर्मदर्शन का मुख्य स्रोत उपनिषद साहित्य है। किन्तु इसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे तथ्य और कारक अवश्य है जिनका प्रभाव भी उनकी अभिव्यक्ति विधि तथा 255
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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