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________________ सर्वथा विमुक्त है। इसके बाद भी मण्डन मिश्र ने जीव और ब्रह्म का भेद दिखाने वाली कठोपनिषद की एक श्रुति का उदाहरण दिया । ' आचार्य शङ्कर ने उत्तर में कहा इससे भी अद्वैत सिद्धान्त में कोई बाधा नहीं पहुंचती यह तो लोकसिद्ध भेद का प्रतिपादन मात्र करती है। ऐसे अर्थ लोक में सिद्ध नहीं दिखलायी पड़ेगे। जगत् में अभेद दिखलायी नही पड़ता है।' 'तत्त्वमसि' महावाक्य से जीव और ब्रह्म की एकता प्रतिपादित होती है। जो प्रमाणो, श्रुति, स्मृति अर्थात तर्क सेवाधित नहीं हो सकती है। आचार्य शङ्कर ने मीमांसक मर्मज्ञ मण्डन मिश्र को भरी विद्वन्मण्डली में पराजित कर दिया। मीमांसा कर्मकाण्ड पर अद्वैतज्ञान की पूर्ण विजय हुई। भारती ने भरी सभा में निर्णय घोषित किया- "मेरे पतिदेव इस शास्त्रार्थ में पराजित हो गये है, और आचार्य प्रवर विजयी । " मण्डन मिश्र द्वारा स्तुति ब्रह्मा के अवतार, मीमांसक शिरोमणि, महान कर्मकाण्डी मण्डन मिश्र शङ्कराचार्य से शास्त्रार्थ में पराजित होने पर आचार्य को गुरु मानकर याज्ञिको की भरी सभा में उनकी स्तुति करने लगे- हे भगवन्! अब मुझे आपके वास्तविक स्वरूप का पूर्ण बोध हो गया। आप संसार के आदिकारण है, आपका स्वरूप ज्ञानमात्र है, पर अज्ञानियों के उद्धार के निमित्त इस शरीर को धारण किये हुये है । वास्तव में आप अशरीरी हैं । हे यतिशिरोमणि! आपने उपनिषदों द्वारा निरूपित एक अद्वितीय, अखण्ड, अनादि, अनन्त, सत् चित् आनन्द ब्रह्म के स्वरूप की सम्यक् व्याख्या की है । 'तत्वमसि' महावाक्य का अस्त्र आपने वेदविरोधी और नास्तिक बौद्धों के सिद्धान्त का शिरछेदन करनें के लिए किया है। यदि आप ऐसा न करते तो वैदिक धर्म रसातल में चला गया होता। 1 ऋतं पिबन्तौ सुकृतस्यलोके, गुहां प्रविष्टौ परमे परार्धे छायातपौ ब्रह्मविदो वदन्ति, पंचाग्नयो ये च त्रिणाचिकेतः । । कठोपनिषद् 9/3/9 2 'मृत्यो स मृत्युमाप्नोति य इह नानेव पश्चति । तथा शंकर दिग्विजय - ८ / ११३ 3 शंकर दिग्विजय-८/ ७६, ८/ ७७ 253
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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