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________________ अर्थात् जिस घर में शुक और शुकी आपस में बातचीत करते हुये यह बोलते हों - वेद स्वतः प्रमाण है, अथवा परतः प्रमाण, कर्म ही फलदाता है अथवा ईश्वर जगत् नित्य है अथवा अनित्य उसी घर को मण्डन मिश्र का घर समझ लीजियेगा । आचार्य शङ्कर मण्डन मिश्र के घर पहुॅचे वे श्राद्धकर्म में उस समय लगे थे। कुछ समय पश्चात आचार्य शङ्कर का मण्डन मिश्र से वार्तालाप हुआ और मण्डन मिश्र शास्त्रार्थ के लिये तैयार हुये तथा व्यास और जैमिनी को मध्यस्थता के लिये शङ्कर ने आमंत्रित किया किन्तु ऋषियों ने कहा हे! विद्वत् शिरोमणि शङ्कर! मण्डन की सहधर्मिणी उभयभारती मध्यस्थता करेगी। वे साक्षात सरस्वती की अवतार है । मण्डन मिश्र पहले मीमांसा के थे और कर्मकाण्डी थे जहां वेदान्ती कर्मफलदाता ईश्वर को मानता था, वहां मण्डन मिश्र कर्म का फलदाता ईश्वर को न मानकर कर्म को मानते थे । आचार्य शङ्कर ने मण्डन मिश्र से कहा हे सौम्य ! मुझे सामान्य अन्न की भा नहीं चाहिए मैं तो विवादरूपी भिक्षा की आकांक्षा से आपके पास आया हूँ परन्तु इस विवाद में एक शर्त हम लोगों को माननी पड़ेगी जो पराजित होगा वह एक दूसरे का शिष्य बनेगा। सभा मण्डप में शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ उभय भारती ने मध्यस्थता स्वीकार की। जयराम मिश्र ने लिखा है- शङ्कराचार्य ने अपनी प्रतिज्ञा रखी - ब्रह्म 'सत्य' है जगत 'मिथ्या' है 'जीव' और 'ब्रह्म' एक ही है जैसे सीप में रजत का भान होता है वैसे सत्चित् आनन्द स्वरूप ब्रह्म में दृश्यमान प्रपञ्च भासित होता है । जब उपनिषदों के तत्वमसि, अहं ब्रह्मास्मि, प्रज्ञानंब्रह्म अयमात्मा ब्रह्म आदि महावाक्यों द्वारा जीव और ब्रह्म की एकता का बोध होता है तब अनादि अविद्या समेत समस्त प्रपञ्च नष्ट हो जाता है। जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है । शङ्कर ने कहा यही मेरा विषय है। उपनिषद् इसमें प्रमाण है। यदि मैं शास्त्रार्थ में पराजित 251
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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