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________________ इस भाष्य का 'शारीरक भाष्य' भी कहते हैं। शारीरिक शब्द से तात्पर्य है- शरीर में निवास करने वाला 'आत्मा' इन सूत्रो में आत्मा के स्वरूप की मीमांसा की गयी है। इसलिए इन सूत्रों को शारीरिक सूत्र एवं इस भाष्य को शरीरक भाष्य की संज्ञा दी गयी है आवा २. श्रीमद्भगवद्गीता भाष्य आचार्य शङ्कर ने इस भाष्य में गीता की निवृत्ति मूलक और ज्ञानपूरक व्याख्या की है वे अपने इस भाष्य में सिद्ध करने की चेष्टा की है कि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के बल 'तत्वज्ञान' से ही होती है, ज्ञानकर्म समुच्चय से नहीं। ३. उपनिषद्भाष्य ___इस उपनिषद् भाष्य में बारह उपनिषदों का आचार्य शंकर ने भाष्य किया है। परन्तु केन, श्वेताश्वर, माण्डूक्य और नृसिंहतापिनी उपनिषदों पर लिखे गये भाष्यों पर विद्वानों को पूर्ण संदेह है। वे इन चारों को आदि शङ्कराचार्य की कृति न मानकर किसी अन्य शङ्कराचार्य की कृति मानते है। उपनिषद् के भाष्यों की शैली बड़ी उदात्त गंभीर, सरल, सुबोध और आकर्षक है। अपने मत की पुष्टि के लिये आचार्य ने प्राचीन वेदान्ताचार्यो के सिद्धान्तों का उद्धरण दिया है। इस दृष्टि से बृहदारण्यक उपनिषद् का भाष्य सबसे अधिक विद्वतापूर्ण, व्यापक और प्राञ्जल हैं। ब्रह्मप्राप्ति के साधनों में उन्होंने कर्मकाण्ड की उपादेयता का बड़ी युक्ति एवं तर्क से खण्डन किया है। आचार्य शङ्कर के प्रस्थानत्रयी के ये भाष्य प्रौढ़ शास्त्रीय गद्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। (ब) इतरग्रन्थों पर भाष्य- यद्यपि आचार्य शङ्कर कृत इतर ग्रन्थों की भाष्य रचना पचास के लगभग बतायी जाती है किन्तु ये ग्रन्थ किसी अन्य शङ्कराचार्य के है आदि शङ्कराचार्य की नहीं। आदि शङ्कराचार्य की निःसंदिग्ध रचनाएँ इस प्रकार है 248
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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