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________________ भगवान शङ्कराचार्य से पूर्ववर्ती वेदान्तियों में आचार्य ब्रह्मदत्त प्रमुखतम है। इन्होंने भी ब्रह्मसूत्र का भाष्य रचा है। इस बात की जानकारी श्री यामुनाचार्य ने अपने 'सिद्धित्रय ग्रन्थ' में और एक अज्ञातनामा विद्वान ने 'प्रपञ्च हृदय' में दी है। मध्वसम्प्रदाय के 'मणिमञ्जरी' नामक ग्रन्थ में (६/२/३) भगवान शङ्कराचार्य के समकालिक ये है, ऐसा लिखा है, किन्तु इसकी प्रामाणिकता में विद्वानों को संदेह है। सुरेश्वराचार्य ने बृहदारण्यक भाध्यवार्तिक मे, वेदान्तदेशिक श्री वेंकटनाथ ने 'तत्वमुक्ताकलाप' की 'सर्वार्थ सिद्धिवृत्ति' में वेदान्तचार्य होने के कारण इसका स्मरण किया है। इनके स्थितिकाल के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। आज भी इस आचार्य का स्थितिकाल अनिर्णीत ही है। ऐसा हिरियन्ना महोदय ने भी माना है। तथा उनके मत में ब्रह्मसूत्र भाष्य तथा छान्दोग्योपनिषद भाष्य की भी रचना आचार्य ब्रह्मदत्त ने की। अतएव संक्षेपशारीरक के (३/२१६) की सुबोधिनी टीका में छान्दोग्य वाक्यकार के प्रसंग में इनका नाम उल्लिखित है। आचार्य ब्रह्मदत्त की कोई रचना उपलब्ध नहीं है। केवल वेदान्त ग्रन्थों में तथा उनकी टीकाओं में उनके मत का उल्लेख प्राप्त होता है। उसके अनुसार ब्रह्म, जीव, जगत्, मोक्ष आदि के विषय में श्री ब्रह्मदत्त के सिद्वान्त सम्बन्धी कुछ तथ्य मिलता है। श्री ब्रह्मदत्त अद्वैतवादी थे। इनके मत में जीव अनित्य है तथा एकमात्र ब्रह्म ही नित्य पदार्थ है। दोनों की भिन्नता प्रतीत होने पर भी ब्रह्म से जीव भिन्न नहीं है किन्तु अभिन्न ही है। अतएवं सुरेश्वराचार्य ने ब्रह्मदत्त को अद्वैतवादी कहकर स्मरण किया है अनुत्सारित नानात्वं ब्रह्म यस्यापि वादिनः । 'कं-..............भर्तृहरि ब्रम्हदत्त शंकर श्री वत्सारा भाष्करादि विरचित .........| सिद्धित्रये पृ०५ ख-ब्र० काण्डस्य भगवत्पाद ब्रम्हदत्त भास्करादिर्भितभेदेनापि कृतम्' प्रपंच हृदय पृ०३६ द्र०- म० म० श्री गोपीनाथ कविराज महोदयस्य वेदान्त दर्शन भूमिकायां पृ०१३ सर्वार्ध सिद्धि २/१६ 215
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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