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________________ मुक्ति कहते हैं। ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का मुख्य उपाय कहा गया है। ज्ञान ही वह साधन है जिसके द्वारा परम सिद्धि की प्राप्ति होती है। आत्मा को ही मोक्ष-प्राप्ति का साधन बतलाया गया है। योगवासिष्ठ में अद्वैतवाद और पातञ्जलयोग का समन्वय परिलक्षित होता है। उसमें योग वेदान्त है। योग और ज्ञान ये दो चित्त नाश के उपाय या क्रम हैं। 'द्वौ क्रमौ चित्तनाशस्य योगो ज्ञानं च राघवः' । योगस्तदवृत्ति विरोधो हि ज्ञानं सम्यग्वेक्षणम् ।। योगवासिष्ठ और शाङ्कर अद्वैतवेदान्त आरम्भ में शाङ्कर अद्वैत वेदान्त का विकास योगवासिष्ठ से पूर्णतया निरपेक्ष था। प्रारम्भिक अद्वैत वेदान्ती योगवासिष्ठ को अपने सम्प्रदाय का ग्रन्थ मानने से इनकार करते थे। किन्तु विद्यारण्य स्वामी के समय से लेकर आज तक योगवासिष्ठ को शाङ्कर अद्वैत वेदान्ती स्वीकार करने लगे हैं। इतना निश्चित रूप से स्पष्ट है कि ज्ञान की सप्तभूमिका के सिद्धान्त को सभी अद्वैतवेदान्ती मानते हैं। वस्तुतः योगवासिष्ठ और शङ्कर अद्वैत वेदान्त में कुछ भिन्नताएँ हैं। समानताओं का विन्दु जैसे- १ निर्गुण ब्रह्मवाद २. ब्रह्मात्मैक्यवाद ३. जगन्मिथ्यात्ववाद ४. जीवनमुक्तिवाद ४. दृष्टिसृष्टिवाद और ६. अजातवाद पर योगवासिष्ठ तथा शङ्कर अद्वैतवेदान्त में साम्य है किन्तु शाङ्कर अद्वैतवेदान्त जहां व्यवहारिक सत् और प्रातिभासिक सत् में भेद करता है वहां योगवासिष्ठ का मत इससे अलग है। शङ्कराचार्य माया को विषयगत और काल्पनिक नहीं मानते है किन्तु इससे अलग योगवासिष्ठकार माया को काल्पनिक और विषयिगत् मानते हैं। 1 द्विविधा मुक्तता लोके संभवत्यनधाकृते। संदेहैका विदेहान्या विभागोऽयंतयो श्रृणु।। यो० वासि० ३/४२/११ - आचार्य बलदेव उपाध्याय- संस्कृत वाङ्मय का वृहद इतिहास दशमखण्ड वेदान्त- पृ० ५६७ उ० प्र० संस्कृत संस्थान लखनऊ। 182
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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