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________________ डा० एस० दीवान जी इसका रचनाकाल ८८५ से ६७५ ई० के मध्य का बतलाते हैं। एस० पी० खट्टाचर्य १००० से १२०० ई० तक के बीच का इसका समय मानते हैं और वी० राघवन ११०० से १२५० ई० तक का मानते हैं। योगवाशिष्ठ के रचनाकाल निर्धारण के मतभेद को निम्न तथ्यों के आधार पर दूर किया जा सकता है१. काश्मीर के अभिनन्द गौण में योगवासिष्ठ का संक्षिप्त संस्करण ६वीं शताब्दी में तैयार किया था जिसका नाम 'लघुयोगवासिष्ठ' है। अतः योगवासिष्ठ की रचना इसके पूर्व अवश्य हुई होगी। २. प्रो० एस० पी० भटाचार्य ने योगवासिष्ठ के ऊपर कश्मीरी शैवमत के त्रिक सम्प्रदाय का प्रभाव परिलक्षित हुआ माना है। योगवासिष्ठ में मायावाद को स्वीकार नहीं किया गया। आभासवाद, कल्पनावाद, क्रियाशक्तिावाद, स्पन्दवाद तथा काश्मीर शैवमत के ३६ (छत्तीस) तत्त्वों की स्वीकृति आदि त्रिक सम्प्रदाय के मतों को स्वीकार किया है। ३. पी० सी० दीवान ने रचनाकाल के निर्धारण के विषय में कहा है कि सर्वज्ञात्मुनि के संक्षेप शारीरिक के द्वितीय अध्याय के १८२वें श्लोक में योगवाशिष्ठ का संकेत किया गया है। इस संस्करण से यह निश्चित होता है कि इसकी रचना "संक्षेपशारीरिक" के पूर्व हुई होगी। ४. जर्मन विद्वान डा० विन्टर नित्स ने लिखा है कि योगवासिष्ठ के एक सारग्रन्थ की रचना 'गौड़ अभिनन्द' में ६वीं सदी के मध्य की थी। अतः यह स्पष्ट होता है कि योगवासिष्ठ की रचना इससे पूर्व हो चुकी थी। आचार्य शङ्कर ने इसकी चर्चा नही की है इसलिए योगवासिष्ठ शङकराचार्य के किसी समकालीन लेखक ने की होगी" अलएव इसके रचनाकाल के विषय में एस० एन० दास गुप्त का मत, अधिक 175
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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