SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता में मोक्ष प्राप्त करने अथवा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होने के उपायों का भी वर्णन किया गया है। मोक्ष की प्राप्ति तभी हो सकती है जब जीवात्मा अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण रखे । गीता में इन्द्रियों को नियंत्रित करने का ही उपदेश है इन्द्रिय निग्रह का नहीं है। मोक्ष के लिये गीता में बताये गये तीनों मार्गों में से कर्म-ज्ञान-भक्ति में से किसी एक मार्ग को अपनायाजा सकता है। समालोचना गीता में यह बात ध्यातव्य है कि भगवद्गीता का आदर्शवाद यद्यपि अवैज्ञानिक और एक पक्षीय है तो भी संसार से पलायन पर नहीं वरन् साहस के साथ जीवन की समस्याओ का सामना करने पर आधारित है। उसमें अन्धविश्वास पूर्ण कर्मकाण्डों अथवा मन की निष्क्रियता का समर्थन नहीं किया गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि कोई भी व्यक्ति इस संसार से विमुख होकर पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकता है। कर्म का त्याग नहीं वरन् निष्काम भाव से किया गया कर्म ही सुख प्रदान करता है। निष्काम कर्म के इस सिद्धान्त को सत्तारूढ़ वर्गों ने तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने के लिये प्रयुक्त किया जब कि समाज के कुछ प्रगतिशील अंगों ने इसका ही एक नई सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के संघर्ष के लिये इस्तेमाल किया। गीता नास्तिक व्यक्तियों में अनेक दुर्गुणों को गिनाती है जैसे पाखण्ड, घमण्ड, क्रोध, अदम्य वासना और अज्ञान। कृष्ण इन तामसी गुणों को उन्मूलन करने का और दैवी गुणों को विकसित करने का उपदेश देते हैं। गीता ऐसे वैयक्तिक गुणों को समाज की नैतिक आवश्यकताओं और नीति सम्बन्धी नियमों के साथ सम्बद्ध करती है। के० दामोदरन ने अपनी पुस्तक 'भारतीय चिन्तन परम्परा” में लिखा है कि 'गीता ने किसी नये सिद्धान्त अथवा किसी नई दार्शनिक विचार प्रणाली का प्रतिपादन नहीं 171
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy