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________________ महाभारत के शान्ति पर्व में बतलाया गया है कि यह गीता धर्म, विवस्वान, मनु और इक्ष्वाकु आदि की परम्परा से लोक में प्रसिद्ध हुआ । गीता के चतुर्थ अध्याय में बतलाया गया है कि सर्वप्रथम भगवान ने गीता धर्म का उपदेश विवस्वान को दिया ।' इसके बाद विवस्वान ने मनु को और मनु ने इक्ष्वाकु को दिया यह ग्रन्थ गोपालनन्दन श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को बछड़ा बनाकर उपनिषद रूपी गायों से दुहा गया अमृतमय दूध है जिसे सुधीजन पीते हैं। अध्यात्मतत्व का विवेचन गीता में बड़े ही सुन्दर ढंग से किया गया है। किन्तु इन सब का समन्वय कर एक निश्चित सिद्धान्त स्थापित करना कुछ दुष्कर कार्य है । इसलिये आचार्य शंकर ने गीता को दुर्विज्ञेयार्थ बतलाते हैं- " तदिदं गीताशास्त्रं समस्त वेदार्थ सार संग्रह भूतं दुर्विज्ञेयार्थम् । " गीता में ब्रह्म के सगुण तथा निर्गुण दोनों रूपों का वर्णन किया गया है किन्तु वास्तव में ये दोनों रूप आपस में अभिन्न है । सर्वोन्द्रिय गुणाभासं सर्वेन्द्रिय विवर्जितम् । असक्तं सर्वभूच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च ।। (१३/१४) इस प्रकार गीता यह मानती है कि ब्रह्म जगत् की उत्पत्ति स्थिति और लय का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है। वह शुद्ध चैतन्य और अखण्ड आनन्द है वह निर्विकल्पक, निरूपाधि और विश्वातीत है । अन्तर्यामी रूप में वह सारी प्रकृति और समस्त प्राणियों में वास करता है जिस प्रकार सूत्र में मणि पिरोयी रहती है उसी प्रकार उस पर ब्रह्म में यह सारा जगत् अनुस्यूत है। ' गीता में कहीं-कहीं ईश्वर के विषय में उपनिषदों की निष्प्रपञ्चवादी विचार भी 1 महा० शा० पर्व - ३४८ / ५१-५२ 2 सर्वोपनिषदों गावोदोग्धा गोपालनन्दनः । पार्थोवत्स सुधीभोक्ता दुग्धं गीतामृतम् महत् ।। 3 मयिसर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इब। गीता ७/७ 160
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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