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________________ ७. यजुर्वेद में कहा गया है कि हम सभी लोग अपनी रक्षा के लिये, उस ईश्वर की, जो जंगम और स्थावर सब का स्वामी है, वही बुद्धि का प्रेरक है, उस की प्रार्थना करते हैं। ८. उस परमेश्वर के स्वरूप का वर्णन करते हुये वेद कहता है कि वह शरीर रहित, शुद्ध, नस-नाड़ियों से रहित, पापों से रहित स्वयम्भू आदि विशेषणों से युक्त है। पश्चिमी विद्वानों और उनकी विचारधाराओं से प्रभावित कुछ भारतीय विद्वान भी यह मानते हैं कि वेदों में ब्रह्म विद्या नहीं है, ब्रह्म विद्या का विकास वेद के पश्चात वेदान्त अर्थात् उपनिषदों में हुआ है। किन्तु कुछ विद्वान तो इतना अवश्य स्वीकार करते हैं कि ऋग्वेद के अन्तिम में आते-आते एकेश्वरवाद की भावना कुछ पनप गई थी परन्तु दयानन्द तो इस विचारधारा से असहमत होकर यह उद्घोषणा करते हैं कि वेदों का मुख्य तात्पर्य परमेश्वर को ही प्राप्त करने में है। "एवमेव सर्वेषां वेदानाशी श्वरे मुख्ये अर्थे मुख्य तात्पर्यमस्ति ।।" महर्षि दयानन्द अपनी इस बात को सिद्ध एवं प्रमाणित करने के लिये कठोपनिषद् का प्रमाण देते हैं। 'समस्त वेद जिस के गीत गाते हैं वह 'ओऽम्' है।' वेदान्त दर्शन भी इस बात को मानता है कि वेदों में 'ब्रह्म' का वर्णन पाया जाता है।' वेदों में ब्रह्म को सर्वशक्तिमान, देवों के देव, सर्वज्ञ, व्यापक, सर्वान्तर्यामी आदि विशेषणों से अभिहित किया गया है। इस प्रकार वेदों में एकेश्वरवाद का जितना स्पष्ट और सुन्दर वर्णन किया गया है, वैसा अन्यत्र शायद ही हो। दयानन्द का मानना है कि जो बहुदेववाद या हीनोथीज्म की विचारधारा उत्पन्न हुई उसके पीछे कारण संभवतः यह रहा होगा कि 'देवता' शब्द से अर्थ का अनर्थ किया गया। किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि 1 तदेवाग्निस्तदादित्य- --(यजु० ३/२/१) 2 रूचं ब्राह्म जनयन्तो देवा अग्रे तब्रूवन् । यस्तवैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन्वशे।। (यजु० ३१/२१) 3 क्वचित् साक्षात्क्वचित परम्पराच। अतः परमार्थो वेदानां ब्रह्मैवास्ति। वही पृष्ठ। * सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति – कठो० १/२/१५। तत्तुसमन्वयात् (वेदान्त १/१/४) 149
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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