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________________ जाती है और शेष को पुनर्जन्म प्राप्त होता है। कठोपनिषद् में जब नचिकेता यम के द्वार से लौट आता है तब वह पुनर्जन्म की ओर ही इंगित कर रहा है। मुण्डक उपनि० में भी पुनर्जन्म से सम्बन्धित वर्णन है। बृहदाण्यक उपनिषद में पुनर्जन्म का वर्णन है- 'क्षीर्ण च पुण्ये ततः पुनरावर्तन्ते। ये खलु पृथिव्यां नानायोनिषु जनः प्रपद्यान्ते मनुष्यजातौ जायन्ते।' (बृहदा० ६-२-१५-१६) गीता में प्रतिपादित निष्काम कर्मयोग का वर्णन, मूल रूप से ईश उपनिषद् में प्राप्त होता है जिसमें कहा गया है कि निष्काम भाव से प्रेरित होकर कर्म करने वाला व्यक्ति कर्म के बन्धन में नहीं बंधता है। 'कुर्वन्नेदेह कर्माणि जिजीविषेच्छत् समाः । एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति, न कर्म लिप्यते नरे।। (ईशोपनिषद-२) इस प्रकार ईश उपनिषद में विद्या और अविद्या अर्थात् ज्ञान मार्ग एवं कर्ममार्ग दोनों में समन्वय मिलता है। इसी प्रकार कठउपनिषद में भी श्रेय और प्रेय का समन्वित रूप वर्णित है। वेद में एक ईश्वर का वर्णन उपनिषदों में यह सिद्धान्त प्रचलित है कि उपनिषदों का ब्रह्म एक है। आचार्य शंकर के सिद्धान्त पर यदि ध्यान दें तो यह आचार्य ने स्पष्ट किया है कि ब्रह्म ही एकमात्र सत् है, और शेष सभी मायोपहित चैतन्य है। ब्रह्म ही संसार का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है। किन्तु यदि उपनिषदों का आधार वेद माना जाये तो परस्पर संगति से ऐसा अर्थात आचार्य शंकर का मत समीचीन प्रतीत नहीं होता है। क्योंकि वेदों के अनेक मंत्र एक ब्रह्म का प्रतिपादन तो करते हैं परन्तु साथ ही आत्मा अर्थात् 'अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां वहीः प्रजाः सृजमानांसरूपाः। (श्वेता० ४-५) 147
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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