SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिखा है कि "वेद भारतीय धर्म तथा दर्शन का प्राण है भारतीय धर्म में जो जीवनशक्ति दृष्टिगोचर होती है उसका मूलकारण वेद ही है। __वेद अक्षय विचारों का मानसरोवर है, जहां से विचारधारा प्रवाहित होकर भारत भूमि के मस्तिष्क के उर्वर बनाती हुई निरन्तर बहती है तथा अपनी सत्ता के लिये उसी उद्गम भूमि पर अवलम्बित रहती है। ये भारतीय साहित्य के ही सर्वप्रथम ग्रन्थ नहीं है प्रत्युत् मानवमात्र के इतिहास में इनसे बढ़कर प्राचीन ग्रन्थ की अभी तक उपलब्धि नहीं हुई है।" वेद की रचनाकाल का निर्धारण बड़ी कठिन समस्या रही है। मैक्समूलर ने १८८६ में प्रकाशित 'हिस्ट्री ऑफ एन्शिएण्ट संस्कृत लिटरेचर' नामक अपने ग्रन्थ में उपरितम समयसीमा १२०० ई० पूर्व स्वीकार किया है जो अधिकांश पश्चिमी विद्वानों को भी मान्य है। हॉग ने २४०० ई० पूर्व और बालगंगाधर तिलक तथा याकोवी ने ज्योतिष के आधार पर क्रमशः ६००० वर्ष तथा ४५०० वर्ष ईसा पूर्व से वैदिक युग का आरम्भ माना। यदि हम वेदों के रचयिता को जानने का प्रयास करें तो निराश ही होना पड़ेगा क्यों कि इनका रचयिता कोई नहीं है। वेद में उस सत्य का वर्णन है जिसका दर्शन कुछ मनीषियों को हुआ था। इन्हें 'देववाणी' के रूप में भी माना जाता है इसलिये ये 'श्रुति' कहलाते हैं। समस्त वैदिक साहित्य मौलिक परम्परा से ही प्राप्त हैं, इसलिये 'श्रुति' शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है। भारतीय परम्परा वेदों को 'अपौरूषेय' मानती रही है। मंत्रदृष्टा ऋषियों ने इसका प्रणयन न करके इसका साक्षात्कार किया है। वेद के विविध पर्यायवाची शब्द हैंजैसे श्रुति, आम्नाय, त्रयी, छन्द आगम और निगम। श्रुति का सम्बन्ध सुनने से है। यज्ञों में मंत्रों का व्यवहार होता था और वही व्यवहार श्रवण परम्परा से व्यापक हो जाता था। वाचस्पति मिश्र का कहना है- "गुरूमुखानुश्रूयते इत्यनुश्रवो वेदः।" (साङ्ख्यतत्त्व कौमुदी - २) 'बलदेव उपा० - भा० दर्शन - पृ० २७ 125
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy